स्नेह और आशीर्वाद के साथ

30 अगस्त 2009

उफ़, एक बच्चे से इतना सारा काम

आजकल तो बड़ी समस्या हो गई है। हम अभी डेढ़ साल के भी नहीं हो पाये हैं और दीदी बन गये तो सबको लगता है कि जैसे बहुत बड़े हो गये हैं। अबतो घर के काम भी हमें करने होते हैं। छोटी बहिन को भी खिलाना होता है। उसे खिलाना ही अपने आप में बहुत बड़ा काम था कि हमारे ऊपर घर का काम भी डाल दिया।
अब आप ही देखिए, कैसे हमें कभी आँगन में तो कभी कमरे में वाइपर करना पड़ रहा है। हमें तो कुछ समझ नहीं आ रहा है कि क्या किया जाये? इस चक्कर में न तो टीवी देख पा रहे हैं और न ही कहीं घूमने जा पा रहे हैं। और तो और कभी कभी हम चुपचाप पढ़ भी लिया करते थे, अब पढ़ भी नहीं पा रहे हैं।
हमने चुपके से चाचा को दो तीन बार फोन भी कर दिया है। अभी चाचा बाहर हैं, जब चाचा बापस आयेंगे और सबको डाँट पड़ेगी तब मजा आयेगा। तब हम कहेंगे और करवाओ बच्चे से काम।
अभी चलते हैं हमारा छोटा बेबी, अरे आप लोग भूल जाते हैं, हमारी छोटी बहिन, इस समय रोने लगा है। चलें उसे थोड़ा सा प्यार कर लें और चुप भी करा दें। घर में तो कोई उस छोटे से बच्चे को खिला ही नहीं पाता है।

28 अगस्त 2009

सीपीयू की सवारी ही कर डाली

अभी दो तीन दिन पहले हमारा कम्प्यूटर काम नहीं कर रहा था। नहीं ऐसा नहीं है कि बिलकुल काम न कर रहा हो, काम तो कर रहा था पर बहुत ही धीरे धीरे। चाचा ने बताया कि कोई वायरस आ गया है। वैसे हमारे चाचा तो घर पर ही कम्प्यूटर फार्मेट कर लेते हैं पर लगता था कि अबकी कोई बड़ी समस्या थी, इस कारण वे उसे दिखाने दुकान पर ले गये थे।
अब कम्प्यूटर में खराब क्या होना था, सीपीयू। तो चाचा ने उसे कम्प्यूटर से अलग किया और बाहर निकाल कर रख दिया। हम उस समय टहल टहल कर बड़े मजे से बिस्किट खा रहे थे। हमने देखा कि ये अजीब सा डिब्बा यहाँ क्यों रख दिया गया है, कुछ समझ नहीं आया।
बस फिर क्या था, चाचा उस समय अपनी बाइक निकाल रहे थे और हम लगे सीपीयू की सवारी करने। बड़े आराम से सीपीयू पर बैठे और अपने बिस्किट का स्वाद लेने लगे। मम्मी ने देखा तो उन्हें लगा कि कहीं इस कम्प्यूटर के सामान में हम कुछ और गड़बड़ न कर दें। वे लगीं हमें डाँटने, अब हमें पता था कि दादी और चाचा के रहते कोई भी हमें डाँट नहीं सकता है। इस कारण से हम और भी शेर बने रहे।
मम्मी ने एक दो बार तेजी से बोला तो हमने भी उन्हें डरा दिया। अब ये तो नहीं पता कि वे डरीं या नहीं पर थोड़ा सा मुस्करा कर अपने काम में लग गईं। काम में लगने का एक और कारण था कि दादी भी उन्हें देख रहीं थीं और चाचा भी अन्दर आ गये थे। चाचा के आने से हमें बड़ा आराम हुआ। हम मजे से अपना बिस्क्टि खाने लगे। चाचा ने भी कुछ नहीं कहा।
जब हमारा बिस्किट खत्म हो गया तो चाचा ने कहा कि हमें इसे सुधरवाने ले जाना है। अब तुम उतरो और अपने खिलौनों से खेलो। हम चाचा की बात मानकर आराम से उतर गये और अपने एक खिलौने को उठाकर उससे खेलने लगे।
हमें मालूम था कि अब खाली सीपीयू पर बैठने का मजा भी नहीं है क्योंकि बिस्किट तो खत्म हो चुका था। इसके अलावा ये भी मालूम था कि जितनी देर हम सीपीयू को ले जाने में करवायेंगे उतनी देरी से वह सुधर कर आयेगा और उतनी ही देरी से हम आप लोगों से बातें कर पायेंगे।
आप लोगों से जल्दी से जल्दी मिलने के लालच में हम सीपीयू से उतरे और चाचा उसे सही करवाने ले गये।


27 अगस्त 2009

क्या आप इस तरह पाउडर लगाते हैं?

आजकल हम अपने साज श्रंगार पर भी ध्यान दे रहे हैं। मम्मी तैयार करतीं हैं तो हमको लगता है कि हम अपने आप तैयार हो जाया करें। आखिर हम बड़े हो गये हैं।
मम्मी ने ड्रेसिंग टेबिल का सारा सामान तो अंदर कर दिया है। बाहर कुछ भी नहीं रखा है इस कारण हमें अपने आप तैयार होने में बड़ी दिक्कत आ रही है। मौका देखकर हम अपने आप तैयार होना शुरू कर देते हैं।
एक दिन मौका लग गया। पिताजी ने किसी काम से छोटा शीशा मँगवाया। काम हो जाने के बाद वे उसे फिर बापस रखवाना भूल गये। बस फिर क्या था, हमारे तो मजे हो गये। हमने तुरन्त उसे उठाकर अपने आपको देखा और फिर वही पास में रखा पाउडर का डिब्बा उठा कर अपना काम शुरू कर दिया।
देखा आपने हम कितनी अच्छी तरह से पाउडर लगाते हैं। घर में इस तरह कोई भी पाउडर नहीं लगाता है। चेहरे पर, देह पर तो सभी लगाते हैं पर हमने पाउडर सिर पर लगा रखा है। आप ही बताइये क्या कोई सिर पर पाउडर लगाता है? नहीं न, हम ही ऐसा कर सकते हैं।
ऐसा कर दिया, बड़ा मजा आया। बुरा तब लगा जब मम्मी ने हमारे हाथ से पाउडर का डिब्बा छुड़ा कर हमसे दूर रख दिया। हमारे हाथ से शीशा भी ले लिया, फिर हम खुद को बहुत देर तक नहीं देख सके।
चाचा ने फोटो खींच ली थी अब उसी को देख लेते हैं। कहिए सुंदर लग रहे हैं हम पाउडर सिर पर लगा कर?


24 अगस्त 2009

पढ़ना देख लिया अब लिखना भी देख लो

नमस्कार,
आपसे बहुत दिनों बाद मिलना हो रहा है। इसका कारण ये रहा कि हम आजकल अपनी पढ़ाई पर ध्यान ज्यादा दे रहे हैं। जमाना पढ़ने का ही है। आपको पहले भी बताया था कि हम पढ़ाई करने लगे हैं। अब हमने लिखना भी शुरू कर दिया है।
एक दिन हमने सोचा कि हमारे पिताजी ने तो बहुत कुछ लिख डाला है तो हम भी लिखें। बस हमने भी मौका निकाल कर एक पेन उठा लिया और इधर उधर चलाना शुरू कर दिया। हमारे पिताजी ने इसे देखा तो हमारे लिए एक नई डायरी निकाल दी।
उन्होंने डायरी में हमारा नाम, जन्मतिथि, फोन नम्बर, ब्लाग का यूआरएल भी लिख दिया। हमें तो जल्दी पड़ी थी लिखने की तो हमने जल्दी से डायरी छीन ली।
अब आप देखिए हमने कैसे लिखना शुरू कर दिया। एक पेज फिर दूसरा और फिर तीसरा। इतना लिखने के बाद हमारा डायरी में लिखने से मन भर गया तो हमने अपने हाथ पर लिखना शुरू कर दिया।
बस यहीं हो गई गड़बड़, पिताजी ने हमारे हाथ से पेन छुड़ा लिया और डायरी भी बन्द करके रख दी। हमें साथ में यह भी समझाया कि पेन से कागज पर ही लिखा जाता है, शरीर पर नहीं।
हम भी समझ गये, तभी तो हमें अब डायरी और पेन मिल जाता है लिखने को। अब हम डायरी में ही लिखते हैं, कभी कभी नजर बचा कर अपने हाथ पर लिख ही लेते हैं।


11 अगस्त 2009

हमारी गोद में वो रोती नहीं है

रविवार को चाची हमारी छोटी सी बहिन को लेकर घर आ गईं। तबसे हमें बहुत इच्छा हो रही थी कि उसे एक बार हम अपनी गोद में लेकर खिलायें। पर क्या करें कोई हमें गोद में उसको देता ही नहीं।


हमारी छोटी बहिन भी बस सारा दिन सोती ही रहती है। दादी कहती हैं कि हम इतना नहीं सोते थे। कल हम रोज की तरह चाची के पास खड़े थे, हमारी बहिन सो रही थी। हमने उसको लेने के लिए फिर मम्मी से कहा, मम्मी तो नहीं मानी पर दादी ने हमें पलंग पर बिठाया और हमारी गोद में हमारी छोटी बहिन को लिटा दिया।


देखो, हम कितनी तो अच्छी तरह से उसको अपनी गोद में ले लेते हैं। ये बात और है कि दादी ने डर के कारण एक हाथ उसके सर के पीछे लग रखा था।
हमारी गोद में वह रोती भी नहीं है।

09 अगस्त 2009

हम खेल रहे हैं अपनी बहिन के संग

आज बहुत दिनों बाद आपसे मिलना हो पा रहा है। एक तो घर में सभी व्यस्त थे तो किसी को हमारी बात सुनने का समय नहीं था और दूसरी बात ये थी कि हमारी तबियत खराब हो गई थी।
हमारी छोटी बहिन आई। वो और चाची अस्पताल में थे, इस कारण से दादी और चाचा को वहीं रुकना होता था। हमें दादी और चाचा के बिना बहुत खराब लग रहा था। पहले तो हम सोच रहे थे कि एक-दो दिन में सभी लोग घर बापस आ जायेंगे पर तीन दिन बाद भी जब ये लोग घर नहीं आये तो हमने दादी के लिए रोना शुरु कर दिया।
दादी और चाचा को याद करते हुए हम रोते और इसी कारण से हमारी तबियत बिगड़ गई। कल शाम से हालत सही हुई है और मजेदार बात ये हुई है कि आज ही सुबह चाची हमारी छोटी सी बहिन को लेकर घर आ गईं। हम बहुत ही खुश हुए उसको देखकर।
अब हमारी तबियत भी ठीक है तो हमने कहा कि आपसे दो-चार बातें कर ली जायें। इसके बाद हम फिर व्यस्त हो जायेंगे अपनी बहिन के साथ खेलने में।
बाकी कल हम आपको अपनी बहिन की सुंदर सुंदर सी फोटो दिखायेंगे। बिलकुल हमारी तरह है वह। आप देखना तब आपको भी ऐसा ही लगेगा।

02 अगस्त 2009

एडवांस में भेज दी थी बहिन की राखी

आने वाली पाँच तारीख को रक्षाबन्धन है। इसी तारीख को हमारी बुआ की बेटी ‘गौरी’ का जन्मदिन भी है। राखी का त्योहार हम पिछले साल भी मना चुके हैं, तब हम बहुत छोटे थे। इस बार हम बड़े हो गये हैं।

इस बार हमने अपनी राखी अपने सनय दादा को भेज दी है। वे लखनऊ में रहते हैं और अभी उनके यहाँ आने की कोई उम्मीद भी नहीं है। एक बड़ी मजेदार बात हुई, चाचा अभी कुछ दिन पहले लखनऊ में ही थे और तब तक हमने अपनी राखी भेजी नहीं थी। चाचा को ये बात मालूम थी तो उन्होंने एक राखी हमारी ओर से लेकर सनय दादा को दे दी थी। बाद में हमने भी एक राखी भिजवा दी।

(ये हैं हमारे सनय दादा)


दो-तीन दिन बाद जब हमने बुआ से फोन से बात करके राखी मिलने के बारे में पूछा तो बुआ ने बताया कि चाचा राखी लेकर दे गये हैं। अब सनय दादा के पास दो राखी हो गईं थीं तो दादी ने कहा कोई बात नहीं, हो सकता है कि एक बहिन की राखी एडवांस में पहुँच गई हो।
दादी की बात सच भी निकली, हमारी छोटी सी प्यारी सी बहिन भी आ गई। अब यदि सनय दादा यहाँ आते हैं तो हम दोनों मिलकर उन्हें राखी बाँधेंगे।
अभी तो हम बस इन्तजार कर रहे हैं रक्षाबन्धन का।


01 अगस्त 2009

मेरे घर आई एक नन्ही परी

कल हमारी बहुत व्यस्तता रही। घर में खुशी का माहौल था और हमारी खुशी तो पूछो ही नहीं। कारण, हमारी छोटी सी बहिन कल आई थी।

जी हाँ, आप सही समझे। कल रात को हमारे चाचा-चाची को पहली पुत्री हुई। हम तो बहुत खुश हुए। हमने अपनी छोटी बहिन को बहुत प्यार भी किया। कोई हमको छूने भी नहीं दे रहा था फिर हमने जिद करके उसको थोड़ी देर में छू कर देख भी लिया।

बहुत प्यारी है बिलकुल हमारी तरह है। सब लोग कह रहे थे कि हम भी जब हुए थे तो इसी तरह के दिखते थे। अब किसी को कौन समझाये कि हमारी बहिन हमारे जैसी नहीं होगी तो किसके जैसी होगी।

आपको बतायें अब इस रक्षाबन्धन पर अपने सनय दादा को हम अकेले ही राखी नहीं बाधेंगे, हमारे साथ हमारी छोटी सी बहिन भी राखी बाँधेगी।
अभी बहुत भागदौड़ है, आखिर चाची अभी अस्पताल में ही हैं। घर का और वहाँ का काम करना है। बहुत जिम्मेवारी होती है बड़ों के सिर पर। हाँ...हाँ...हम भी तो अब बड़े हो गये हैं।
चलिए अब आप लोगों से फिर मिलेंगे, अभी अपनी बहिन को देख आयें, पता चला कि बहुत रो रही है हमारे लिए।