स्नेह और आशीर्वाद के साथ

19 सितंबर 2009

मामा लाये हमारे लिए हाथी

इस बार जब हम अपने नाना के घर इलाहाबाद गये तो वहाँ खूब मस्ती की। मामा ने हमारे लिए एक हाथी भी खरीदा। अरे! परेशान न होइये, सच्ची का हाथी नहीं, हाथी की डिजायन की कुर्सी।
उसमें हवा भर दो तो फूल कर बहुत बड़ी हो जाती है। उसमें बैठा भी जा सकता है। वहाँ तो जब तक हम रहे उसे मामा ने फुलाकर रख दिया। हम जब भी इधर-उधर से आते तो उसी पर जाकर बैठते।
बापस घर पर आने के बाद उसको बहुत दिनों तक निकाला नहीं गया। हम भी अपने दूसरे कई और खिलौनों में मगन हो गये।
अभी दो-तीन दिन पहले सामान एक सा करते समय मम्मी ने उसे बाहर निकाला तो हमारी नजर उस पर पड़ गई। बस फिर क्या था, हमें सब याद आ गया कि कैसे हमारा हाथी हमें अपने ऊपर बिठा लेता था।
हमने जल्दी-जल्दी उसमें हवा भरवाई और जा बैठे उसके ऊपर। बहुत दिनों के बाद बैठने को मिला था तो हमें भी बैठने में बड़ा मजा आ रहा था। इसी मजे में हम बहुत सी स्टाइल दिखाते हुए बैठे रहे।
देखा आपने हमारी स्टाइल को।

12 सितंबर 2009

दादी की गोद सबसे सुरक्षित जगह है

ज से जहाज तो उड़ गया, अब? ये बात कोई और तो समझेगा नहीं कि हमें करना क्या है? कहना क्या है? अभी तो स्थिति ये है कि हम ही बोलते हैं और हम ही समझते हैं। कभी-कभी कुछ शब्द ऐसे निकल जाते हैं जो औरों की समझ में आ जाते हैं तो हमें बहुत अच्छा लगता है कि चलो कोई तो है जो हमारी बात को समझ रहा है।
समझ और अधिक विकसित करने के लिए आवश्यकता होती है ज्ञान की। हम पढ़ भी रहे हैं। सिर्फ कोर्स की किताबें पढ़ते रहने से कुछ नहीं होगा। तो हमने समाचार-पत्र भी पढ़ना शुरू कर दिया।
पढ़ने का तो हाल ये है कि अभी कुछ दिनों पहले हमारे पिताजी अपने लिए नई कुर्सी लेकर आये थे। हमने भी मौका निकाला और जा बैठे।
मन भर गया तो उतर कर सामान इधर-उधर करना शुरू कर दिया। ये देख हमारी मम्मा को लगा कि हम शैतानी कर रहे हैं। अब उन्हें कौन समझाये कि हम कमरे का सामान सही कर रहे हैं। जब उन्हें नहीं समझा पाये और हमें लगा कि कहीं हम अब डाँट न खा जायें हमने चुपचाप दादी की गोद में बैठना सही समझा।
अब हम तो हम हैं, शान्त तो रहना ही नहीं था। बस मम्मा को जीभ दिखा कर चिढ़ाना शुरू कर दिया। हमें मालूम था कि दादी की गोद में हमारा कोई कुछ नहीं कर सकता है।
मम्मा को भी ये पता है तो वो भी हमें दूर से ही डराने लगीं। हमने भी कुछ नहीं देखा और अपनी आँखें बन्द कर लीं। खूब डराते रहो, हमें तो कुछ दिख ही नहीं रहा।

11 सितंबर 2009

ज से जहाज और अ से आम

इधर कुछ दिनों से हम लगातार कुछ न कुछ बोलने के मूड में रहते हैं। कोई मिलने आयेगा तो उससे बातें, किसी का फोन आ गया तो उससे भी बातें। मन बहुत करता है बातें करने का।
इस बोलने बतियाने के कारण कई सारे शब्द सीख भी लिए हैं। वैसे हमने बोलना तो बहुत पहले ही शुरू कर दिया था। जब हम पहली बार अपने नाना के घर गये थे, तब हम तीन माह के रहे होंगे। हमने उसी समय पापा कहना शुरू कर दिया था। हालांकि ऐसा बराबर नहीं कहते थे।
अभी चाचा हमारे साथ लगातार कई दिनों तक रहे। हम जब अपनी किताब खोल कर बैठते तो उसमें हमें भालू, चीता, जहाज, कुत्ता, भैया, दीदी बहुत ही पसंद आते। बस चाचा ने हमारी पसंद देखी और एक शब्द हमें सिखा दिया ज से जहाज।
हम बड़ी आसानी से इस शब्द को सीख भी गये। अब जब भी कोई पूछता है कि ज से, हम तुरन्त अपना हाथ आसमान की ओर ले जाकर कहते हैं जहाज। मम्मा और चाची ने सिखाया अ से आम।
आपको बतायें हम और भी कई शब्द बोल लेते हैं पर कई बार जानबूझ कर नहीं बोलते नहीं तो हमारे घर के लोग बस सारा दिन वही नया शब्द हमसे सुनते रहते हैं।