स्नेह और आशीर्वाद के साथ

31 दिसंबर 2010

नए वर्ष की शुभकामनायें तो लेते जाइये


नव वर्ष 2010 की आप सभी लोगों को शुभकामनायें
हमदोनों बहनों की तरफ से
साथ में हमारे परिवार की तरफ से भी

29 दिसंबर 2010

मेलजोल में व्यस्त बने रहे, अब मिली फुर्सत



नमस्ते,
आप लोगों से इस दौरान बहुत ही कम मुलाकात हो सकी। इसका एक तो कारण ये रहा कि हम आने-जाने में व्यस्त रहे साथ ही हमसे मिलने भी बहुत से लोग आते रहे।

जैसा कि आपको बताया ही था कि हम नवम्बर में अपनी बुआ के पास कानपुर चले गये थे। उनका एक छोटा सा आपरेशन हुआ था। हम अपनी मम्मी के साथ उन्हीं के पास बहुत दिन तक रुके।

हमारे बुआ-फूफा
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वहाँ से हम लौटकर आये दिसम्बर के शुरू में। उस समय हमारे छोटे वाले बाबा, जिन्हें हम मूँछों वाले बाबा भी कहते हैं, आये हुए थे। साथ में दादी भी आईं थीं। उनके साथ दो दिन गुजारे।


बाबा-दादी के साथ हम और हमारी छोटी बहिन
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ये देखो हमारे बाबा की मूछें
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उससे पहले मौसी भी आईं हुईं थीं। मौसी के साथ भी दो-तीन दिन गुजर गये। हालांकि मौसी तो हमारे कानपुर जाने के पहले आईं थीं।

हमारी मौसी
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जबसे हम कानपुर से लौटे हैं तब से कोई न कोई और दूसरे काम भी पड़ते रहे। इधर हमारे पिताजी और हमारी मम्मा भी कुछ ज्यादा व्यस्त रहे। इस कारण भी आपसे मिलना नहीं हो सका।

अपने बुआ-फूफा के साथ तथा मम्मा-पिताजी भी हैं साथ
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आज सोचा कि इस वर्ष में अब दो दिन ही बचे हैं, आप लोगों का आशीर्वाद ले लें पता नहीं एक जनवरी को इंटरनेट की व्यस्तता, मिलने वालों के आने-जाने के कारण आप लोगों से मुलाकात न कर पाये।

वैसे हम प्रयास करेंगे कि हम आप सभी से एक तारीख को मिलें, उसी दिन हम अपनी छोटी बहिन से भी आपको मिलवायेंगे।

तब तक नमस्ते।

07 दिसंबर 2010

सुनिए हमारी कविता जो हमारी दीदी ने सिखाई है

हमें हमारे पड़ोस में रहने वाली रंगोली दीदी ने एक कविता याद करवाई थी। इस कविता को हम सभी को सुनाते भी हैं। एक दिन हमने अपने पिताजी को भी यह कविता सुनाई तो उन्होंने उसका वीडियो बना लिया।
हमने आज उस वीडियो को देखा, देख कर बहुत मजा आया।
आप भी देखिए, मजा आये तो बताइयेगा जरूर।
से...से...से,
हम छोटे हैं,
मम्मी मारती है,
हम रोते हैं,
पापा आते हैं,
बिस्किट लाते हैं,
हम खाते हैं,
मम्मी को चिढ़ाते हैं।


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बताइयेगा जरूर कैसा लगा ये विडिओ और हमारी कविता

21 नवंबर 2010

इधर हम व्यस्त हैं बहुत -- काम अधिक जो है

इन दिनों हम बहुत ही व्यस्त रहे। पहले तो जैसा कि आपको पता ही है कि हमारे पिताजी का चुनाव चल रहा था। इसके तुरन्त बाद हमारी पूजा बुआ जी लखनउ से आ गईं। उनके आने पर हमें बहुत ही अच्छा लगा।

आपको पता है कि उनके आने पर हमें बहुत अच्छा क्यों लगा? नहीं पता न, तो हम बता देते हैं। उनको इसी जून में बिटिया हुई हैं और आपको पता है, दो-दो यानि कि जुड़वां बेटियां हुईं हैं। हम तो उन्हीं के साथ खेलने को लेकर बहुत खुश थे।

पूजा बुआ हम लोगों के साथ तीन दिनों तक रहीं फिर उन्हें बापस जाना था। जिस दिन वे वापस लौटी उसी दिन हम भी अपनी सबसे बड़ी बुआ जी के पास कानपुर आ गये। दिनांक 17 नवम्बर को।

कानपुर आने का कारण हमारी बड़ी बुआ जी का ऑपरेशन होना था। अब वे एकदम ठीक हैं और हॉस्पिटल से घर भी बापस आ गईं हैं। कानपुर हमारा जल्दी-जल्दी आना हुआ इस कारण अपना कैमरा नहीं ला सके। इस कारण से इस बार आपको फोटो नहीं दिखा पा रहे हैं।

पूजा बुआ की जुड़वां बेटियों की भी फोटो हम आपको कानपुर से लौटने के बाद दिखायेंगे।

तब तक नमस्कार।


अगली फोटो तक आप हमारी इस स्टायलिश फोटो को ही देख लीजिये

02 नवंबर 2010

आज से ही आप सभी को दीपावली और धनतेरस की शुभकामनायें --अक्षयांशी

आज आप लोगों से बहुत दिनों बाद मिलना हुआ। इसका एक कारण तो हमारे घर में व्यस्तता का माहौल बना होना है।

आप
सभी को मालूम ही हो गया होगा कि इन दिनों हमारे पिताजी विधायक का चुनाव लड़ रहे हैं और उनके कारण ही घर में शेष लोग भी किसी न किसी रूप में उनकी मदद को लगे रहते हैं। इस कारण से हमें भी मौका नहीं मिला कि आप लोगों से बात कर लेते।




आज
समय निकाल कर आपसे बात करने इस कारण से और आ गये कि कम से कम दीपावली के पर्व पर तो आप सभी लोगों का आशीर्वाद ले लें और अपनी शुभकामनाएं दे दें।



ये चित्र गूगल छवियों से साभार

कल धनतेरस है, सभी लोग कुछ न कुछ सामान खरीदेंगे। कल हम भी पिताजी से जिद करेंगे कि थोड़ा सा समय निकाल कर बाजार चलें। कल हम पिताजी को जरूर बाजार ले जायेंगे और कुछ न कुछ सामान जरूर खरीदवायेंगे।
चलिए कल की कल से रही आप सभी को दीपावली और धनतेरस की शुभकामनाएं।

07 अक्तूबर 2010

जन्मदिन चंचल दीदी का और केक हमने भी काटा

परसों पांच तारीख को हमारे घर के सामने हमारी चंचल दीदी का जन्मदिन था। हमारी छोटी बुआ की बड़ी बेटी।
हम भी गए थे वहां। बस हम घर के लोग और बच्चे थे।


चंचल दीदी ने केक काटा तो साथ में हमने भी कटवाया।
जबसे हमने अपने जन्मदिन पर केक काटा है तबसे सबके जन्मदिन पर हम भी साथ में केक कटवाते हैं। हम बन गए हैं केक काटो एक्सपर्ट.........


जब केक कट गया तो सभी ने तालियाँ बजाकर गीत गाया, हमने भी जोर से ताली बजाई। देखो तो ज़रा.... आपको आवाज़ सुनाई दी? नहीं.......कोई बात नहीं....


ये लो, केक खाने के बाद का चित्र। हमारी चाची ने चंचल दीदी के चेहरे पर केक की क्रीम लगा दी। दीदी ने प्यार में हमें और हमारी बहिन को गोद में उठाकर फोटो खिंचवा ली।


सभी की देखा देखी हमने भी अपनी छोटी बहिन को केक खिला दिया। हाँ ये हमारी दादी हैं। हम दोनों को गोद में लिए हुए।
जन्मदिन पर बहुत मजा आया।

25 सितंबर 2010

ये कुछ खाया हमने और बना लिया गया वीडियो

हमारे पिताजी उधर खाना खाने के बाद सौंफ जरूर खाते हैं। उन्होंने एक डिब्बे में सौंफ रखकर पलंग पर ही रख दिया है। उनकी देखादेखी हमने भी सौंफ खाना शुरू कर दिया है।

पहली बर जब हमने सौंफ खाई तो हमें बहुत अच्छी लगी। इसके बाद तो हमें जब भी मौका लगता है हम चुपके से सौंफ का डिब्बा उठाकर सौंफ खाना शुरू कर देते हैं।

सौंफ हमें इतनी अच्छी लगती है कि एक-दो बार खाने के बाद मन ही नहीं मानता है। इस कारण से हम कई-कई बार लगातार सौंफ खा डालते हैं।

आज हम सौंफ खाने बैठे तो हमें पता ही नहीं चला कि कब हमारे पिताजी ने हमारा वीडियो बना लिया। हम भी सौंफ खाने में व्यस्त थे कि तभी हमने वीडियो बनता देखा तो चुपचाप डिब्बा बन्द करके रख दिया।

वीडियो आप भी देख लीजिए।



24 सितंबर 2010

हम भी बनाने लगे कहानी --- अक्षयांशी

आप लोगों से लगातार वादा करने के बाद भी हम समय से आपसे मुलाकात नहीं कर पाते हैं। इधर सभी की व्यस्तता होने के कारण हम भी व्यस्त रहे। चलिए जब आये दुरुस्त आये।

इस बीच हमने कहानी कहना भी सीख लिया है। रात को कई बार सोते समय हमारी दादी या फिर हमारी मम्मी हमको कहानी सुनाती रही हैं। उन्हीं की देखादेखी हमने भी कहानी कहना सीख लिया है।

हमने एक दिन अपने पिताजी को बताया कि सुबह छत पर बन्दर का बेबी आया और हमें देखकर कहने लगा कि भागो-भागो परी आ रही है।

इस पर पिताजी ने आगे पूछा कि फिर क्या हुआ?

हमने आगे बताया कि बन्दर का बेबी भाग कर अपनी मम्मी के पास चला गया और बोला बचाओ-बचाओ परी आ रही है।

आपको बता दें कि ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था। यह तो आप सभी को मालूम ही है कि हमें घर में कोई अकेला नहीं छोड़ता है। ऐसे में घर की छत पर अकेले छोड़ना तो असम्भव ही है। हमने एक दिन बन्दर को देखा था बस उसी के हिसाब से यह छोटी सी कहानी बना दी।

इस कहानी पर हमारे घर में सभी बहुत हँसे और बोले कि जैसा पिता वैसी बिटिया। हमारे पिताजी भी कुछ न कुछ लिखते ही रहते हैं।

चलिए आपको बताते चलें कि कल हमने उनको हिस्सों में एक छोटी सी कहानी सुनाई। उन्होंने अपने मोबाइल से इसका वीडियो भी बनाया। आप भी देखिये, पता नहीं कैसा लग रहा है?

यह कहानी बाद में सुनायेंगे।


09 सितंबर 2010

शेर और जेब्रा के साथ खेल --- बिना डरे

हमारे लिए एक बहुत छोटा सा किन्तु सुन्दर सा शेर लाया गया। शेर के साथ जेब्रा भी था। आपको आश्चर्य लग रहा होगा? पर डरिये नहीं क्योंकि शेर और जेब्रा असली नहीं थे।


अभी एक दिन हम पिताजी के साथ बाजार घूमने निकले तो बाजार में थोड़ी-थोड़ी दूरी पर कुछ अंकल लोग रंगीन से खिलौने बेच रहे थे। हमने भी लेने को कहा।

उस
समय सामान ज्यादा था तो पिताजी ने कुछ भी नहीं लिया और न ही उन अंकल के पास गाड़ी रोकी। हाँ अगले दिन शाम को हमारे लिए शेर और जेब्रा आ गये।

इन
दोनों जानवरों के साथ एक हैलीकॉप्टर भी आया।

अब
शेर तो आपको दिख रहा है किन्तु बेचारा जेब्रा तो दूसरे दिन ही फट गया। अब फटे जेब्रा की फोटो आपको दिखाते तो आपको भी बुरा लगता। अरे हमें ही बहुत बुरा लग रहा था।


हाँ, याद आया, हैलीकॉप्टर तो धागे से बाँधकर कमरे में लटका रखा है। जब पंखे की हवा चलती है तो गोल-गोल घूमता है। बड़ा मजा आता है।

24 अगस्त 2010

रक्षाबंधन पर हमने राखी बाँधी अपनी छोटी बहिन के साथ मिल कर

रक्षाबंधन का पर्व भाई बहिन के पावन प्रेम का पर्व है। इस बार हमें सानू भाई जी को राखी बाँधने में अच्छा लगा, पिछली बार छोटे होने के कारण हम सही से अपने आप राखी नहीं बाँध पाए थे।

इस बार हमने खुद राखी बाँधी, देखिये


गाँठ बाँधने में मम्मी ने मदद कर दी थी पर टीका हमने लगाया और राखी भी कलाई पर हम ही ने रखी और बाँधी। गाँठ लग जाने के बाद हमने देखा सही से कि गाँठ ठीक बाँधी है मम्मी ने या नहीं।


राखी बाँधने के बाद हमने सानू भाई जी को मिठाई भी खिलाई।


हमसे मिठाई खाने के बाद सानू भाई जी ने हमें भी मिठाई खिलाई।


हमारी छोटी बहिन पलक ने भी सानू भाई जी को राखी बाँधी। ये देखो चाची उसकी मदद कर रही हैं, टीका लगाने में। अरे अभी पलक छोटी है न।


चाची ने उसका हाथ पकड़ के रखी बंधवा दी। देखो पलक खुश भी लग रही है। इस साल तो चाची ने उसकी मदद कर दी पर अगले साल वो हमारे साथ ही मिल कर अपने आप राखी बाँधा करेगी।


इस वर्ष के बाद अब अगले वर्ष का इंतज़ार है।

22 अगस्त 2010

हम और हमारी बहिन के द्वारा घुड़सवारी --- मजेदार है

पिछली बार आपको हमने अपने और अपनी छोटी बहिन के घोड़े की सवारी की बात बताई थी। उस दिन किसी कारण से फोटो डाऊनलोड नहीं हो पा रही थी। आज उन्हीं फोटो को लगा रहे हैं।

देख लीजियेगा








वाकई बहुत मजा आया था अपने इस घोड़ेकी सवारी करके।

21 अगस्त 2010

कुछ लिख रहे थे गुपचुप-गुपचुप और देखा तो बन गईं आँखें

आजकल लिखने, पढने का शौक चढ़ा है. कभी न कभी कोई कागज़ पेन लेकर कुछ भी बनाते रहते हैं।
ये पता नहीं क्या बन रहा पर हम तो सबको बताते हैं कि ये आँखें बनीं हैं।
आप भी देखो और बताओ कि क्या आँखें ही बनीं हैं?



क्या लगा आपको?
हम लिखने के साथ साथ पढ़ते भी हैं। सामने रखा बॉक्स भी तो देख लीजिये।


हमारी बनाई आँखें और पास से देख लीजिये।


बाकी कभी बाद में।
नमस्ते

01 अगस्त 2010

अपनी छोटी बहिन का जन्मदिन हमने कल मनाया था

कल यानि कि 31 जुलाई को हमारी छोटी बहिन-जिसके बारे में हम आपको बताते भी रहते हैं-जी हाँ पौच जी, हाँ, उसी पौच जी का कल जन्मदिन था। कल हमारी बहिन पूरे एक वर्ष की हो गई है।

हमने उसको सुबह-सुबह ही कहा था हेप्पी बरडे तू यू

उसकी पहली वर्षगाँठ हमने घर पर ही मिलजुल कर मनाई। सुन्दर सा केक बनवाया गया था, जिसमें एक बहुत सुन्दर सी झोपड़ी बनी हुई थी।


बाबा ने पलक को अपनी गोद में ले लिया और फिर उससे केक कटवाया।


उसको केक काटते देखकर हमें भी अपनी सालगिरह की याद आ गई। हमने भी दादी से केक काटने के लिए कहा तो दादी ने पलक के केक काटने के बाद हमसे भी केक कटवाया।


उसके केक काटने के बाद हमारी दादी, बुआ, मम्मी, पिताजी, चाचा ने और भाईजी, दीदी लोगों ने पलक का टीका कर उसको आशीर्वाद दिया।


आखिर में चाचा और चाची ने भी उसको अपनी गोद में लेकर फोटो खिंचाई।


और आप तो पौच जी को देखो कैसी स्टायल मार रही थी केक कटने के पहले सुन्दर सी ड्रेस में।


25 जुलाई 2010

फोटो देख लीजिये -- हमने भी सीखा कैमरा चलाना -- फोटो खींचना

आज हमने कैमरा पा लिया और पिताजी की अनुमति से कई फोटो भी खींचीं। हम घर में अपने सभी बड़ों को फोटो खींचते देखते थे तो हमारी भी बहुत इच्छा होती थी फोटो खींचने की। आज मौका मिल ही गया।

ऐसा हमने चोरी से नहीं किया। पिताजी के सामने किया, उनकी अनुमति से।

आप देखिये और बताइये कि कैसी हैं फोटो? मोबाईल से तो बहुत बार फोटो खींचीं पर कैमरे से पहली बार खींच रहे हैं..........पता नहीं कैसी होंगी।




फोटो नंबर एक
ये तो हमारे पिताजी के पढने की मेज है। पता नहीं कितना ढेर सारा सामान रखते हैं इस पर। आप भी देख लो।
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फोटो नंबर दो
इनको तो आप पहचान ही रहे हैं....ये तो कुर्सियां हैं। खींचना तो पूरी कुर्सी का था पर जितनी आई है उसमें बैठा ज सकता है...
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फोटो नंबर तीन
ये तो हमें ही नहीं पता कि खींचना क्या था और खिंच क्या गया। वैसे कुर्सी का पैर और बोतल साफ़ दिख रही है। कहा जाए तो स्टायलिश फोटो है ये.........
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फोटो नंबर चार
ये कुछ ठीक आई है। कमरे में टंगे कलेंडर के बेबी की फोटो लेनी थी, आ गई पर थोड़ी सी टेढ़ी है....पर ठीक है। है न?
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फोटो नंबर पांच
हमारी बहिन पौच जी और दादी.....ये सही आई। पता कैसे इसमें हमारा हाथ पिताजी ने पकड़ लिया था फिर भी दादी कट गईं है, फोटो में।
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फोटो नंबर छः
पिताजी की खींचना थी कम्प्यूटर सहित पर न तो कम्प्यूटर सही से आया और न ही पिताजी की फोटो सही आई। यहाँ सब गड़बड़ हो गई।

अब दोवारा जब सही फोटो खींचेंगे तो आपको फिर दिखायेंगे।

17 जुलाई 2010

छोटे चाचा को जन्मदिन की शुभकामनाएं


कल
सोलह जुलाई को हमारे छोटे चाचा का जन्मदिन था। चाचा तो बाहर सर्विस करते हैं और उनको छुट्टी मिलने के कारण वे इस बार घर नहीं सके।

(ये है चाचा की स्टाइल)

हम लोगों ने उन्हें सुबह-सुबह ही फोन से बधाई दे दी थी। रात को घर में बड़े चाचा ने मिठाई लाकर पूजा कर दी और भगवान को प्रसाद चढ़ा दिया।

चाचा
पिछली बार घर पर थे और हम सभी ने जमकर मजा किया था। चाचा घर में सभी से छोटे हैं इस कारण सभी के प्यारे हैं। इस बार उनके घर पर न आने से सभी उदास थे, दादी तो विशेष रूप से।

हम
आपको इस बार अपनी नई फोटो के साथ चाचा की बहुत पुरानी फोटो दिखाते हैं।

(चाचा इस समय शायद एक - डेढ़ वर्ष के होंगे)

देखिये फोटो में ही कितने शैतान दिख रहे हैं और वे उतने शैतान हैं भी। हमें बहुत प्यार करते हैं और बहुत डराते भी हैं। यही छोटे चाचा हमें बिट्टू कह कर बुलाते हैं।

(ये तो हमारी स्टाइल है)

आपको एक और बात बतायें कि चाचा को लेखन का शौक नहीं है, इंटरनेट पर ब्लॉग के रूप में तो बिलकुल भी नहीं। इसके बाद भी उन्होंने हमारी फोटो और हमारे बारे में लिखा पढ़ने की खातिर ही अपना ब्लॉग बनाया है। इसी के द्वारा वे हमसे बातचीत भी कर लेते हैं (टिप्पणियों के रूप में)।

चाचाजी
को हमारी ओर से जन्मदिन की शुभकामनाएँ।

15 जुलाई 2010

बातों-बातों में गुजर गया एक वर्ष -- ब्लॉग हुआ एक वर्षीय


इस महीने हमारी छोटी बहिन का जन्मदिन पड़ेगा। 31 जुलाई 2009 को उसका जन्म हुआ था, घर में उसी के मनाये जाने के सम्बन्ध में बातें हो रहीं थीं। इन्हीं चर्चाओं और बातों के बीच पिताजी को याद आया कि हमारे ब्लॉग को भी शुरू हुए एक वर्ष हो चुका है।




हमारे इस ब्लॉग पर पहली पोस्ट लिखी गई थी 30 जून 2009 को। इस दिन हमारे बुआ-फूफा की वैवाहिक वर्षगाँठ पड़ती है। हालांकि इस कारण से भी कोई भूलने की बात नहीं थी हमारे ब्लॉग की पहली सालगिरह की किन्तु इस दिन पिताजी बहुत व्यस्त रहे थे। इस कारण उनकी याद से निकल गया होगा?

हमको लेकर हालांकि ब्लॉग तो पहले ही शुरू कर दिया गया था। पहले-पहल तो हमारी फोटो और वीडियों से सम्बन्धित ब्लॉग ही बनाया गया था। बाद में हमारी बातों और हमारी गतिविधियों को आपके सामने लाने वाला यह ब्लॉग बनाया गया।

इस ब्लॉग का संचालन अभी पूरी तरह से हमारे पिताजी के द्वारा ही हो रहा है। हम अभी बहुत ही छोटे हैं इस कारण से हम अपनी बातों को खुद आपके सामने नहीं रख पाते हैं।



पिताजी की व्यस्तता होने के कारण और उनके अपने ब्लॉग पर समय देने के कारण हमारी पोस्ट की संख्या भी कम है। अब हमारे पिताजी ने हमसे वादा किया है कि वे जल्दी-जल्दी आप लोगों के साथ हमारी बातों को बाँटा करेंगे।

हमेशा की तरह आप लोगों का प्यार और आशीर्वाद मिलता रहेगा, ऎसी आशा है।

14 जुलाई 2010

घोड़े को चलाने में आया बहुत ही मजा

इधर एक दो दिनों से बारिश हो रही है तो मौसम कुछ अच्छा सा हो गया है। अब गर्मी भी कम लग रही है। बाहर खेलने में भी मजा आ रहा है। हम लोग बारिश में नहीं भीगे।

बारिश के कारण दादी कुछ सामान सही करने, कुछ सामान रखने के लिए स्टोर रूम में गईं तो हम भी उनके पीछे हो लिए। वहाँ हमने अपना पुराना घोड़ा देखा। घोड़ा असली वाला नहीं है, वही सी-सॉ करने वाला। बस घोड़ा देखा तो उससे मन हो गया खेलने को।

दादी ने हमारे कहने से उस घोड़े को बाहर निकाला और धोया। घोड़े के नहाने के बाद हम और हमारी छोटी बहिन पौच जी (पलक) उस पर बैठ कर खेलने लगे।

पहले हम आगे बैठे और हमने पिताजी के गाड़ी चलाने की नकल करते हुए अपनी घोड़ानुमा मोटरसाइकिल चलाई। बाद में हम पीछे बैठे और हमारी पौच जी ने गाड़ी चलाई।

घोड़ा अब भी बाहर ही रखा है और हम दोनों बहिनें मौका देखकर उस पर बैठ कर मजा लेती हैं। सचमुच बहुत ही मजा आता है।

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आज पता नहीं क्या हो गया है कोई भी फोटो लोड नहीं हो रही है.....आज की पोस्ट पर आप फोटो नहीं देख पायेंगे....अपने घोड़े के साथ खेलने की फोटो बाद में

07 जुलाई 2010

अब हम फेसबुक, ट्विटर, ऑरकुट पर भी आपको मिलेंगे

नमस्ते,

आप सभी को एक दो अच्छी खबरें देना है। हमारे बारे में हमारे पिताजी और मम्मा की तरफ से ब्लॉग पर काफी कुछ बताया जाता है। इधर अब हम आपसे परिचय का क्षेत्र और बढ़ाते हुए अब आपको ट्विटर पर, फेसबुक पर, ऑरकुट पर भी मिलेंगे।



इन
जगहों पर हमारी छोटी-छोटी बातें भी आपको देखने-सुनने-पढ़ने को मिलती रहेंगी। यह सब भी हमारे मम्मा और पिताजी ही कर रहे हैं। यह तो आपको पता ही है कि अभी हम इतने छोटे हैं कि अपने आप कम्प्यूटर पर कुछ नहीं कर पाते हैं।



वैसे
भी हमें अभी कम्प्यूटर और मोबाइल आदि का इस्तेमाल भी ज्यादा नहीं करने दिया जाता है। हमें किसी से फोन पर बात भी करवाई जाती है तो घर में सभी की कोशिश रहती है कि बेसिक फोन से बात हो।



पिताजी कहते हैं कि बड़े हो जाओ फिर कम्प्यूटर और मोबाइल का प्रयोग करना।

हम
आपको इंटरनेट पर जहाँ भी मिलेंगे अपने बड़ों के सहयोग से ही मिलेंगे। आप सभी का प्यार और आशीर्वाद हमें हम जगह मिलता रहेगा, ऐसी आशा करते हैं।