स्नेह और आशीर्वाद के साथ

23 फ़रवरी 2010

व्यस्तता अधिक है, इसी कारण दो मोबाइल ले लिए हैं...

तकनीक के विकास ने हम सभी को सहूलियत दी है तो परेशानी भी दी है।
अब हमारी परेशानी है कि हमें सभी से बात करनी पड़ती है, आखिर घर के बड़े हैं, इस कारण से मोबाईल ले लिया। देखिये बात भी हो रही है..................पर एक परेशानी है........????????????????


परेशानी ये है कि व्यस्तता बहुत ज्यादा है। घर के काम, बाहर के काम, (बाहर के लोगों से भी बात करना) आप ही बताइये कि एक मोबाईल से कैसे काम चले?

बहुत प्रयास किया कि एक से काम चल जाए, जब नहीं चला तो दूसरा मोबाईल भी ले लिया।
अब भी परेशानी, जब दोनों मोबाईल पर कॉल आ जाए तो..........................??????????????/
यही स्थिति होती है..........लगाओ दोनों कानों में......................
उफ़!!! बड़ी मुसीबत है, इससे तो अच्छा था कि मोबाईल बनते ही नहीं।

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अरे आप लोग भी!!! अब बात भी कर लेने दीजिये, आप लोगों से ही बतियाते रहे तो कर ली मोबाईल पर काम की बातें। नमस्ते, कल मिलेंगे................

21 फ़रवरी 2010

उड़ी-उड़ी रे साइकिल मेरी उड़ी रे....

हमें अपने चाचा और पिताजी को गाड़ी चलाते देखकर गाड़ी चलाने की बहुत इच्छा करती है। एक दिन हमें अपनी इच्छा पूरी करने का मौका मिल गया।

हुआ यह कि हमारे पास के मकान में रहने वाले अनुज भैया अपने लिए बैटरी से चलने वाली साइकिल लेकर आये। उन्होंने साइकिल खरीदी और हम सभी को दिखाने के लिए घर पर ले आये।


बस फिर क्या था, हम पहले अनुज भैया के साथ घूमे और फिर हमने खुद भी गाड़ी चलाई।

देखा..........फिर थोड़ी देर में हमें समझ आया कि सभी लोग हमें मिलकर बुद्धू बना रहे हैं। हम तो बस गाड़ी में बैठे थे और गाड़ी स्टार्ट होने के बाद भी चल नहीं रही थी।


कुछ भी हो हमने अकेले गाड़ी में बैठने का मजा ले लिया और गाड़ी भले चली न हो पर हमने उसे चला तो लिया ही।


इसी के बाद हमारे चाचा हमारे लिए एक छोटी सी साइकिल ले आये हैं, अब हम उसको ही चलाते हैंआपको भी दिखायेंगे चला कर

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चित्र चाचा के कैमरे से

20 फ़रवरी 2010

रोज-रोज सीख रहे हैं नए-नए शब्द

आजकल पढ़ाई की व्यस्तता है साथ ही लगभग रोज ही हम कुछ न कुछ नया सीख रहे हैं। जैसा कि आपको बताया था कि हम इधर शादियों में भी व्यस्त रहे इस कारण आप लोगों से सम्वाद नहीं रह सका।

पूर्ण समन्वित
हमारे सीखने में आजकल शब्द ज्यादा पकड़ में आ रहे हैं। घर में किसी ने कुछ बोला नहीं और हमने उसे पकड़ने की तुरन्त कोशिश की। इस कोशिश में कई बार शब्द सही निकल आते हैं और कई बार तो बस समझो कि........................
हमने जो शब्द बोलने शुरू किये हैं उनमें दादी, चाचा, चाची, मम्मी, पापा, बाबा, बुआ जैसे शब्द तो काफी पहले से बोलने शुरू कर दिये थे और बहुत ही आसानी से। आजकल जो शब्द हम बोलने की कोशिश में रहते हैं उनमें से कुछ शब्द आप भी सीख लीजिए क्योंकि हमारे जैसे तो आप बिलकुल भी नहीं बोलते होंगे।
डायरी को हम कहते हैं डाईई
पेन को मेन (जबकि हम प सही-सही बोल लेते हैं पर, अरे भई हमें जो बोलना है हम वही तो बोलेंगे)
हमारी छोटी बहन का नाम घर में सब लेते हैं पलक और हम कहते हैं पौच, देखा क्या नाम रखा हमने।
दूध पीने के लिए हम कहते हैं दू-दू और इसी शब्द के बाद हमें घर में गिनती सिखा दी गई। जैसे ही हम कहते दू-दू तो हमारे पिताजी या मम्मा कहतीं तीन-तीन, बस हम भी कहने लगे दू-दू, तीन-तीन, चा-चा। समझे आप चा-चा????...........हाँ, चार-चार, बस इतनी ही गिनती आती है।
पानी को हम मानी ही कहते हैं, बन्दर हम बिलकुल सही बोलते हैं। भाईजी, चीज, टाफी जैसे शब्द भी सही-सही निकलते हैं।
शब्द सीखने और बोलने का कारण आपको पता है? आजकल हम नियम से पढ़ाई करने में लगे हैं। हमारे पिताजी अपने स्टडी रूम में जाकर जैसे ही कुछ लिखने-पढ़ने बैठते हैं हम भी वहीं जाकर जम जाते हैं और कुछ न कुछ सीखते हैं।
आप खुद देख लीजिए, हम लिख रहे हैं या नहीं?