स्नेह और आशीर्वाद के साथ

20 फ़रवरी 2010

रोज-रोज सीख रहे हैं नए-नए शब्द

आजकल पढ़ाई की व्यस्तता है साथ ही लगभग रोज ही हम कुछ न कुछ नया सीख रहे हैं। जैसा कि आपको बताया था कि हम इधर शादियों में भी व्यस्त रहे इस कारण आप लोगों से सम्वाद नहीं रह सका।

पूर्ण समन्वित
हमारे सीखने में आजकल शब्द ज्यादा पकड़ में आ रहे हैं। घर में किसी ने कुछ बोला नहीं और हमने उसे पकड़ने की तुरन्त कोशिश की। इस कोशिश में कई बार शब्द सही निकल आते हैं और कई बार तो बस समझो कि........................
हमने जो शब्द बोलने शुरू किये हैं उनमें दादी, चाचा, चाची, मम्मी, पापा, बाबा, बुआ जैसे शब्द तो काफी पहले से बोलने शुरू कर दिये थे और बहुत ही आसानी से। आजकल जो शब्द हम बोलने की कोशिश में रहते हैं उनमें से कुछ शब्द आप भी सीख लीजिए क्योंकि हमारे जैसे तो आप बिलकुल भी नहीं बोलते होंगे।
डायरी को हम कहते हैं डाईई
पेन को मेन (जबकि हम प सही-सही बोल लेते हैं पर, अरे भई हमें जो बोलना है हम वही तो बोलेंगे)
हमारी छोटी बहन का नाम घर में सब लेते हैं पलक और हम कहते हैं पौच, देखा क्या नाम रखा हमने।
दूध पीने के लिए हम कहते हैं दू-दू और इसी शब्द के बाद हमें घर में गिनती सिखा दी गई। जैसे ही हम कहते दू-दू तो हमारे पिताजी या मम्मा कहतीं तीन-तीन, बस हम भी कहने लगे दू-दू, तीन-तीन, चा-चा। समझे आप चा-चा????...........हाँ, चार-चार, बस इतनी ही गिनती आती है।
पानी को हम मानी ही कहते हैं, बन्दर हम बिलकुल सही बोलते हैं। भाईजी, चीज, टाफी जैसे शब्द भी सही-सही निकलते हैं।
शब्द सीखने और बोलने का कारण आपको पता है? आजकल हम नियम से पढ़ाई करने में लगे हैं। हमारे पिताजी अपने स्टडी रूम में जाकर जैसे ही कुछ लिखने-पढ़ने बैठते हैं हम भी वहीं जाकर जम जाते हैं और कुछ न कुछ सीखते हैं।
आप खुद देख लीजिए, हम लिख रहे हैं या नहीं?




2 टिप्‍पणियां:

रंजन (Ranjan) ने कहा…

vaah ji betaa.. kyaa baat he.. achchhi padhai ho rahi he..


pyaar

Udan Tashtari ने कहा…

डाईई....से पापा की कविता निकाल कर छाप दो..