स्नेह और आशीर्वाद के साथ

25 मार्च 2010

हमने भी बजाई ढोलक अपनी बहिन के मुंडन में

अभी हमारे घर में छोटा सा कार्यक्रम हुआ। हमारी छोटी बहिन ‘पलक’ जिसे अभी हम ‘पौच’ बुलाते हैं, उसका मुंडन हुआ था।


मुंडन का संस्कार हम लोगों में बहुत जोर-शोर से नहीं होता है, बस घर के ही लोग जुड़ जाते हैं और हो जाता है संस्कार।

मुंडन करने के लिए हमारे चाचा के एक परिचित अंकल आये थे बाल बनाने, वे इसी की दुकान चलाते हैं। हमारी छोटी बहिन को मम्मा गोद में लेकर बैठीं और उन अंकल ने बाल काटने शुरू कर दिये।


हमें तो लग रहा था कि पौच जी भी हमारी तरह बहुत रोयेगी किन्तु ऐसा बिलकुल नहीं हुआ। वो तो बिलकुल भी नहीं रोयी, अरे! हम तो बहुत ही ज्यादा रोये थे, अपने मुंडन पर।

देखो, देखो कैसी दिखती है हमारी पौच जी मुंडन के पहिले और मुंडन के बाद।



मुंडन होने तक मम्मा और बुआ पौच जी के साथ रहीं और चाचा, पिताजी उसकी फोटो खींचते रहे। ये फोटो जो आप देख रहे हैं हमारे चाचा ने और पिताजी ने खींची हैं, अपने कैमरे से।

शाम को घर की महिलाओं, मतलब हमारी दादी, चाची, मम्मा, बुआ और पड़ोस की दादी, बुआ, चाची आदि ने मिल कर ढोलक बजाई और लोकगीत भी गाये। हमें तो सुन-सुन कर बड़ा ही मजा आ रहा था।


बाद में हमने और हमारी छोटी बहिन ने भी मिल कर ढोलक बजाई। खूब मजा आया इन सब कामों में।





11 मार्च 2010

हमारी 50 वीं पोस्ट पर मिलिए हमारे मुनमुन से

आपको बताया था कि अब हम नेता बनने की तैयारी कर रहे हैं। इसके लिए काम भी उस तरह के करने होंगे जैसे कि नेता लोग करते हैं। जैसे समाजसेवा, पशु-पक्षी प्रेम आदि-आदि।

हमें तो पहले से ही जानवरों से बहुत प्यार रहा है। हमारे घर के पास के दूसरे घरों में बकरी है, कुत्ता है, खरगोश है, सफेद चूहा भी है, गाय-भैंस भी हैं, बिल्ली भी है, तोता भी है। हमें हमारी दादी इन्हें दिखाने के लिए ले जातीं हैं। हमें बहुत ही अच्छा लगता है।


आपको पहले एक बार बताया था अपने मुनमुन के बारे में। मुनमुन हमने बकरी के बच्चे का नाम रखा है। उसके साथ हम खूब खेलते थे, अब तो वह बहुत बड़ा हो गया है। हमारे मम्मा-पिताजी ने फिर बाजार से एक खिलौने वाला मुनमुन लाकर दिया, बिलकुल हमारे असली मुनमुन जैसा।


उस नकली मुनमुन से खेलने में बड़ा ही मजा आता है। उससे खेलते हैं तो अपने असली मुनमुन की बहुत याद आती है।

अरे ये देखो, कल एक असली कुत्ते का बच्चा गया। हमें तो बहुत ही अच्छा लगा। देखो-देखो हमने कैसे उठा रखा है।



वो भी हमारे साथ बड़े मजे से खेलने में लगा था।

हमने भी तैयारी शुरू कर दी नेतागीरी की

कल और आज घर पर होती चर्चाओं से पता चला कि राज्यसभा में महिलों से सम्बंधित कोई विधेयक पास हो गया. अब इससे क्या होगा ये तो पता नहीं पर ये जरूर पता चला कि अब महिलाओं को बहुतसारी सीटों पर जीत मिल जाया करेगी.


लो जी हम भी तैयार हो गए. नेता बनने की शुरुआत तो अभी से करनी पड़ेगी. इस कारण से नया-नया कुरता-पाजामा बाज़ार से मंगवाया है.

ये क्या सिर्फ 33 प्रतिशत????????????? नहीं जी, हमें तो इतना सारा स्थान चाहिए.... खूब सारा.......इतना सारा.


अब हम चुपचाप आगे की रणनीति बना रहे हैं, हमें डिस्टर्ब नहीं करना................


अच्छा जी, नमस्ते. कल फिर मिलेंगे.......नमस्ते...





02 मार्च 2010

होली भी खेली और रोये भी....

सभी को होली की शुभकामनाएँ। यह बात और है कि होली बीत गई पर शुभकामनाएँ तो दी ही जा सकतीं हैं।

(ये देखो हमने भी होली खेली)
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इस बार हमने भी होली खेली पर रोते-रोते। पिछली बार तो हम बहुत छोटे थे तो हमें उस समय की होली का कुछ भी याद नहीं है पर इस बार तो गजब!
हर बार की तरह इस बार भी घर पर हमारे बाबा लोग आये थे, बस दूसरे वाले बाबा नहीं आ सके थे। बाबा, दादी, चाचा, चाची, मम्मा, पिताजी ने मिलकर खूब होली खेली।

(चाचा, सबसे छोटे बाबा, दादी)
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हमने तो सभी को रंगे देखकर रोना शुरू कर दिया। एक तो हमें कई दिन से बुखार भी आ रहा है और उस पर हरे, लाल रंग के चेहरे देखकर तो हमें बड़ा ही डर लगा।

(हमारे दोनों चाचा)
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हमें और हमारी छोटी बहिन को बहुत जरा सा रंग लगाया पर जरा आप हमारे चाचा लोगों की हालत तो देखो।


अगली बार हम और बड़े हो जायेंगे तब हम भी खूब रंग खेलेंगे। हो सकता है कि तब हमें रोना न आये। वैसे इस बार बाद में हमने भी डरते-डरते चाचा को रंग लगा ही दिया।


तब तक अगली होली तक के लिए फिर से एक बार होली की शुभकामनाएँ।