स्नेह और आशीर्वाद के साथ

07 दिसंबर 2011

दुकान में मशीन और मशीन से निकले रूपये

कल शाम को हम अपने पिताजी के साथ बाजार गये। वे रोज शाम को बाजार जाते हैं, घर का सामान, दूध, फल आदि खरीदने के लिए। दिन में तो उनको बहुत से काम होते हैं, अपने कई दोस्तों के पास जाना होता है इस कारण दिन में हम उनके साथ कम जाते हैं। कल हमने अपने पिताजी के साथ बाजार जाने के लिए कहा तो वे अपने साथ ले जाने को तैयार हो गये।

ठंड तो पड़ने लगी है और बाहर हल्की सी हवा भी चल रही थी, इस कारण से मम्मा ने हमें गर्म कपड़े पहना दिये और एक कैप भी लगा दी। ठंड से अपने आपको बचाते हुए हम अपने पिताजी के साथ बाजार के लिए चल पड़े।

बाजार से सामान लेने के पहले पिताजी ने एक बहुत छोटी सी दुकान के सामने अपनी गाड़ी रोकी। उसके बाद हम दोनों लोग उस दुकान में चले गये। हमें बहुत अजीब सा लगा क्योंकि उस दुकान में कोई नहीं था, बस एक अंकल बाहर बैठे हुए थे। पूरी दुकान में किसी को भी न देखकर बहुत अजीब सा लग रहा था क्योंकि अभी तक हमने किसी भी दुकान को इस तरह से खाली नहीं देखा था।

अभी हम और कुछ समझ पाते उससे पहले पिताजी ने अपनी जेब से एक छोटा सा कार्ड निकाला। उस कार्ड को वहां दुकान में लगी एक मशीन में लगाया, इधर-उधर दो-तीन बटनें दबाईं। ऐ...लो...ये तो बहुत मजेदार बात हो गई। उस मशीन से रुपये निकल आये। हमारी तो कुछ भी समझ में नहीं आया कि ये हो क्या रहा है। पिताजी ने रुपये लिए और एक कागज भी लिया और उन्हें जेब में रखकर दुकान से बाहर आ गये।

हमने पूछा कि ये क्या था? पता नहीं कैसा अजीब सा नाम लिया पिताजी ने, हमें तो याद भी नहीं रहा। घर आकर हमने दादी को बताया, मम्मा को बताया कि पिताजी ने कैसे दुकान में जाकर मशीन से रुपये निकाल लिये। फिर सबने हमें रटाया कि उस मशीन को एटीएम कहते हैं और उससे रुपये निकाले जाते हैं।

अब समझ में आया कि पिताजी ने उससे रुपये कैसे निकाले...किसी दिन हम भी निकाल लायेंगे..खूब सारे रुपये।

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वहां की फोटो आपको नहीं दिखा पा रहे हैं क्योंकि हम खींच नहीं पाए और पिताजी भी नहीं ले सके..
दिनांक - ६ दिसंबर २०११
उरई

06 दिसंबर 2011

चाचा की सगाई में गए भोपाल

आप सभी को कितनी-कितनी खबरें बतानी थीं, कितनी-कितनी खुशखबरी सुनानी थी पर क्या करें व्यस्तता इतनी रही इन दिनों कि कुछ पूछिये नहीं। पिछले माह के अन्त में हम सभी लोगों का भोपाल जाना हुआ। वहां हमारे चाचा की सगाई का कार्यक्रम था। वहां बहुत ही अच्छा लगा।



सगाई वाले कार्यक्रम के लिए हम लोग चाची के शहर गये थे। वहां पंडित जी ने कई रस्मों को सम्पन्न करवाया। हम अपनी छोटी चाची से मिले और उनके लिए अपने साथ जो चॉकलेट ले गये थे, वो भी उनको दी। वे बहुत खुश हुईं हमसे।



और हां, हमारे साथ हमारे चाचा, चाची और पौची भी भोपाल गये थे। कार्यक्रम के बाद हम भोपाल घूमने भी गये। आपको बता दें कि हम पहली बार भोपाल गये थे। वहां हमें बहुत ही अच्छा लगा। बहुत बड़े-बड़े पेड़ देखने को भी मिले।



अब बाकी बातें किसी और दिन.........ठीक!


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सगाई की तारीख - २१-११-२०११
गंज बासोदा ०प्र

18 नवंबर 2011

हो जाए कुछ खाना-पीना -- सौंवीं पोस्ट

हमारे घर में सभी लोग कहते हैं कि हम खाने-पीने में बहुत आनाकानी करते हैं। कोई भी चीज खाने को दी जाती है हम नहीं खाते हैं। अब हम कैसे बतायें कि हमें हर एक चीज अच्छी भी नहीं लगती है। हमें जो पसंद है वह हम आसानी से खा लेते हैं।

अब आप सभी लोग देखिये इस फोटो में, हम कुछ खा रहे हैं या नहीं। अब हम समय भी हर एक चीज तो खाई नहीं जा सकती है। हमारी ये फोटो सुबह-सुबह की है और इस समय सभी लोग चाय-नाश्ता करते हैं तो हम भी नाश्ता कर रहे हैं। अभी हम छोटे हैं तो चाय तो पीते नहीं हैं, दूध पीते हैं वो भी हॉर्लिक्स मिला कर। दूध के साथ में हम बिस्किट, दालमोंठ, कॉर्नफ्लैक्स आदि खा लेते हैं।

दादी ने हमें कॉर्नफ्लैक्स दे दिये हैं कटोरी में और हम इसके साथ दूध पीते हैं। इसमें दूध मिलाने पर हमें यह अच्छा नहीं लगता है। देखो हम कितने मजे से खा रहे हैं, कॉर्नफ्लैक्स...अब इसके बाद दूध पियेंगे। हां, आप सभी लोग ये वाली जो रंगीन सी कुर्सी-मेज देख रहे हैं, वो हमारे मामा ने हमको दिलवाई थी। इसमें गेम भी है और ए, बी, सी, डी भी पूरी लिखी हुई है। हमें पूरी याद भी है, हम कभी बाद में आपको सुनायेंगे।

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आज एक और विशेष बात आपको बतायें कि यह हमारी सौवीं पोस्ट है। हालांकि हम बहुत दिनों से ब्लॉग पर हैं तथापि हमारी हमारी पोस्ट बहुत ही देर से सौ की संख्या तक पहुच पाई है। कोई बात नहीं, अब कोशिश करेंगे कि जल्दी-जल्दी आप सभी लोगों से बात हो जाया करे।

बन गई गली..अब दौड़ेगी हमारी साइकिल

उरई में हमारा घर जहां बना हुआ है वो गली बहुत ही छोटी है। हमारे आसपास की सभी सड़कें और गलियां सीसी वाली बन गईं हैं, एक हमारे घर के सामने की छोटी सी गली नहीं बन पाई थी। हमारे पिताजी ने कुछ दिनों प्रयास किये तो भी लाभ नहीं मिला। अभी कुछ दिन पहले कुछ लोग आये और हमारी गली की नाप आदि लेने लगे। इस पर जब हमारे पिताजी ने निकल कर देखा तो पता चला कि हमारी गली के भी बनने का नम्बर आ गया है।

इसके दो-तीन दिन बाद हमारे पिताजी के ही एक परिचित आये और उन्होंने बताया कि इस गली को वो ही बनवा रहे हैं। सुबह-सुबह से कई आदमी काम करने में लग गये। पुराने पड़े पत्थरों को, ईंटों को निकाला जाने लगा, जहां-जहां उबड़-खाबड़ था उसको भी एक सा किया जाने लगा। इस तरह से छोटे-छोटे काम करके हमारी गली को एकदम से अच्छा सा बनाये जाने का काम होने लगा।



हमने अपनी दादी से और बाकी लोगों से पूछा तो सबने बताया कि इस सड़क को एक सा बनाया जा रहा है इसके बाद हम इस पर साइकिल चलायेंगे। हमें यह सुनकर बहुत ही अच्छा लगा। शाम तक गली बन गई और हमें साइकिल भी नहीं चलाने दी जा रही थी। हमने थोड़ी सी जिद की तो जो अंकल गली बना रहे थे उन्होंने बताया कि इसको पूरी तरह से सूखने के बाद ही हम इस पर अपनी साइकिल चला सकेंगे।



अगली सुबह हमारी साइकिल निकाली गई, लेकिन गली में आसपास के सभी लोग उस पर पानी डालकर उसे गीला कर रहे थे। कुछ और काम भी चल रहा था तो हम साइकिल तो नहीं चला पाये पर हमने उस पर चहलकदमी करके देख लिया। अभी हम टहल ही रहे थे कि कॉलेज से पिताजी भी आ गये तो हमने उनको भी उस नई बनी सड़क पर टहला दिया अपने साथ।

अभी तो टहल कर ही देखा है, अब एक दो दिन में सही से बन जाने पर अपनी साइकिल भी दौड़ा लेंगे।


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दिनांक -- 15 नवम्बर 2011

11 नवंबर 2011

मुंडन संस्कार में मचाई धूम

कल हमारे पड़ोस में एक कार्यक्रम था। पड़ोस वाले भैया-भाभी के पुत्र के जन्मोत्सव पर कार्यक्रम हुआ था। उस छोटे से नन्हे से बेबी का मुंडन होना था।

घर में कार्यक्रम हुआ। मुंडन संस्कार के लिए उनके घर के और भी बहुत से लोग आये थे। हम सभी लोग भी गये थे। छोटे बेबी का मुंडन संस्कार उनके यहां सबसे पहले बेबी की बुआ के द्वारा प्रारम्भ किया जाता है। उस छोटे से बेबी की बुआ भी वहां आई थीं किन्तु उस अवसर पर पता नहीं कहां निकल गये।

संस्कार के समय उनका थोड़ी देर इंतजार भी किया और कुछ देर जब उस बेबी की बुआ वहां नहीं पहुंची तो हमने उस बेबी का मुंडन संस्कार शुरू करवाया। आखिर हम भी तो उसकी बुआ होते हैं।

शाम को फिर पार्टी हुई और हम सभी ने मिलकर खूब मस्ती की।


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दिनांक- १०-११-११ स्थान-उरई