स्नेह और आशीर्वाद के साथ

18 नवंबर 2011

हो जाए कुछ खाना-पीना -- सौंवीं पोस्ट

हमारे घर में सभी लोग कहते हैं कि हम खाने-पीने में बहुत आनाकानी करते हैं। कोई भी चीज खाने को दी जाती है हम नहीं खाते हैं। अब हम कैसे बतायें कि हमें हर एक चीज अच्छी भी नहीं लगती है। हमें जो पसंद है वह हम आसानी से खा लेते हैं।

अब आप सभी लोग देखिये इस फोटो में, हम कुछ खा रहे हैं या नहीं। अब हम समय भी हर एक चीज तो खाई नहीं जा सकती है। हमारी ये फोटो सुबह-सुबह की है और इस समय सभी लोग चाय-नाश्ता करते हैं तो हम भी नाश्ता कर रहे हैं। अभी हम छोटे हैं तो चाय तो पीते नहीं हैं, दूध पीते हैं वो भी हॉर्लिक्स मिला कर। दूध के साथ में हम बिस्किट, दालमोंठ, कॉर्नफ्लैक्स आदि खा लेते हैं।

दादी ने हमें कॉर्नफ्लैक्स दे दिये हैं कटोरी में और हम इसके साथ दूध पीते हैं। इसमें दूध मिलाने पर हमें यह अच्छा नहीं लगता है। देखो हम कितने मजे से खा रहे हैं, कॉर्नफ्लैक्स...अब इसके बाद दूध पियेंगे। हां, आप सभी लोग ये वाली जो रंगीन सी कुर्सी-मेज देख रहे हैं, वो हमारे मामा ने हमको दिलवाई थी। इसमें गेम भी है और ए, बी, सी, डी भी पूरी लिखी हुई है। हमें पूरी याद भी है, हम कभी बाद में आपको सुनायेंगे।

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आज एक और विशेष बात आपको बतायें कि यह हमारी सौवीं पोस्ट है। हालांकि हम बहुत दिनों से ब्लॉग पर हैं तथापि हमारी हमारी पोस्ट बहुत ही देर से सौ की संख्या तक पहुच पाई है। कोई बात नहीं, अब कोशिश करेंगे कि जल्दी-जल्दी आप सभी लोगों से बात हो जाया करे।

बन गई गली..अब दौड़ेगी हमारी साइकिल

उरई में हमारा घर जहां बना हुआ है वो गली बहुत ही छोटी है। हमारे आसपास की सभी सड़कें और गलियां सीसी वाली बन गईं हैं, एक हमारे घर के सामने की छोटी सी गली नहीं बन पाई थी। हमारे पिताजी ने कुछ दिनों प्रयास किये तो भी लाभ नहीं मिला। अभी कुछ दिन पहले कुछ लोग आये और हमारी गली की नाप आदि लेने लगे। इस पर जब हमारे पिताजी ने निकल कर देखा तो पता चला कि हमारी गली के भी बनने का नम्बर आ गया है।

इसके दो-तीन दिन बाद हमारे पिताजी के ही एक परिचित आये और उन्होंने बताया कि इस गली को वो ही बनवा रहे हैं। सुबह-सुबह से कई आदमी काम करने में लग गये। पुराने पड़े पत्थरों को, ईंटों को निकाला जाने लगा, जहां-जहां उबड़-खाबड़ था उसको भी एक सा किया जाने लगा। इस तरह से छोटे-छोटे काम करके हमारी गली को एकदम से अच्छा सा बनाये जाने का काम होने लगा।



हमने अपनी दादी से और बाकी लोगों से पूछा तो सबने बताया कि इस सड़क को एक सा बनाया जा रहा है इसके बाद हम इस पर साइकिल चलायेंगे। हमें यह सुनकर बहुत ही अच्छा लगा। शाम तक गली बन गई और हमें साइकिल भी नहीं चलाने दी जा रही थी। हमने थोड़ी सी जिद की तो जो अंकल गली बना रहे थे उन्होंने बताया कि इसको पूरी तरह से सूखने के बाद ही हम इस पर अपनी साइकिल चला सकेंगे।



अगली सुबह हमारी साइकिल निकाली गई, लेकिन गली में आसपास के सभी लोग उस पर पानी डालकर उसे गीला कर रहे थे। कुछ और काम भी चल रहा था तो हम साइकिल तो नहीं चला पाये पर हमने उस पर चहलकदमी करके देख लिया। अभी हम टहल ही रहे थे कि कॉलेज से पिताजी भी आ गये तो हमने उनको भी उस नई बनी सड़क पर टहला दिया अपने साथ।

अभी तो टहल कर ही देखा है, अब एक दो दिन में सही से बन जाने पर अपनी साइकिल भी दौड़ा लेंगे।


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दिनांक -- 15 नवम्बर 2011

11 नवंबर 2011

मुंडन संस्कार में मचाई धूम

कल हमारे पड़ोस में एक कार्यक्रम था। पड़ोस वाले भैया-भाभी के पुत्र के जन्मोत्सव पर कार्यक्रम हुआ था। उस छोटे से नन्हे से बेबी का मुंडन होना था।

घर में कार्यक्रम हुआ। मुंडन संस्कार के लिए उनके घर के और भी बहुत से लोग आये थे। हम सभी लोग भी गये थे। छोटे बेबी का मुंडन संस्कार उनके यहां सबसे पहले बेबी की बुआ के द्वारा प्रारम्भ किया जाता है। उस छोटे से बेबी की बुआ भी वहां आई थीं किन्तु उस अवसर पर पता नहीं कहां निकल गये।

संस्कार के समय उनका थोड़ी देर इंतजार भी किया और कुछ देर जब उस बेबी की बुआ वहां नहीं पहुंची तो हमने उस बेबी का मुंडन संस्कार शुरू करवाया। आखिर हम भी तो उसकी बुआ होते हैं।

शाम को फिर पार्टी हुई और हम सभी ने मिलकर खूब मस्ती की।


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दिनांक- १०-११-११ स्थान-उरई

10 नवंबर 2011

मामा-मामी को पुत्र-रत्न की प्राप्ति

कल सुबह-सुबह हमारी ननिहाल से बहुत ही अच्छी खबर आई थी। एक खुशखबरी थी जो वैसे तो हमें कल ही आप लोगों को बतानी चाहिए थी पर समय से नहीं बता सके। खुशखबरी यह थी कि हमारी मामी-मामा को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई है।

वैसे तो हम कल सुबह ही आपको यह खुशखबरी देने वाले थे किन्तु हमारे पास उस समय तक अपने छोटे से भाई की कोई फोटो नहीं आई थी। आज हमारी मौसी ने शाम को फोटो मेल कर दी और हमने उसको आप सभी के सामने रख दिया।

हमें बहुत ही खुशी हो रही थी, यह सुनकर। हमने तुरन्त ही मम्मा से कहा कि अब नानी के घर चलो, हमें छोटे बेबी को देखना है। अब हम लोग किसी दिन अपनी नानी के घर इलाहाबाद जायेंगे।

बाकी जल्दी ही मिलते रहेंगे आप सभी से। नमस्कार।


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दिनांक-१०-११-११ >>>> इलाहाबाद

07 नवंबर 2011

आज हमने की अपने पैतृक गाँव की सैर..देखा अपना मकान

आज बहुत ही अच्छी बात हुई...बहुत ही अच्छी। अच्छी इसलिए कि आज हमें अपने पैतृक गांव जाने का मौका मिला। सुबह-सुबह हमारे छोटे बाबा और पिताजी का गांव जाने का कार्यक्रम बना...यह भी पता चला कि साथ में हमारी दादी और छोटी दादी भी जा रही हैं।

सभी को कार से जाना था..सब मम्मी ने हमें जगाया और झट से तैयार कर दिया। हम भी फटाफट घूमने के नाम पर तैयार हो गये। पहले तो हमें मालूम ही नहीं था कि हमें जाना कहां है। हमें तो बस घूमने के नाम से ही मजा आ रहा था।

जब हम अपने गांव पहुंचे तो हमें वहां के आसपास खूब सारी गायें, बकरियां घूमते दिखे..खूब बड़े-बड़े पेड़ देखकर तो हमें बहुत अच्छा लग रहा था। हमने दादी से कहा कि यहां कितना अच्छा लग रहा है।


(गाँव वाली दादी के घर पर)


गांव में हम सभी लोग वहां रह रही हमारी एक और दादी के घर गये। उसके बाद हम लोग अपने भी घर गये। अब वहां कोई रहता नहीं है इस कारण से सारा घर टूट-फूट भरा हो गया है। खूब तो पेड़-पौधे खड़े हो गये हैं वहां, आसपास की दीवार भी गिर गई है। इसके बाद भी हमें मजा आ रहा था अपने बाबा और परबाबा लोगों का मकान देखकर।


(यही है पैतृक मकान..कभी यहाँ चमन बरसता था)


हमारी दादी के कहने पर हमने अपने पैतृक मकान की देहरी पर माथा भी टेका। हमारे आने की खबर सुनकर वहां के आसपास के घरों में रहने वाले लोग भी हमसे मिलने आ गये। हमारे मकान के पीछे के हिस्से में एक भैंस का बहुत ही छोटा सा बच्चा भी बंधा था। हमें उसको देखकर भी बहुत मजा आया। हमारा मन तो उसके साथ खेलने को कर रहा था पर हमें किसी ने भी उसके साथ नहीं खेलने दिया।


(गोले में कैद है भैस का छोटा बच्चा)


खूब देर रहने के बाद हम सभी लोग वापस अपने घर उरई को लौट आये। लौटते में हम अपने गांव की माता के मन्दिर में भी गये। वहां भी खूब सारे पेड़ लगे थे, वहां भी इस कारण से बहुत ही अच्छा लग रहा था।


(गाँव में माता का मंदिर)


आपको एक खास बात बतायें कि हम अपनी इस पीढ़ी के बच्चों में सबसे पहले बच्चे हैं जो गांव जाकर अपने मकान को देखकर आये हैं। और तो और अभी हमारी मम्मी और हमारी दो-दो चाचियां भी गांव नहीं जा पाई हैं।

आखिर कुछ मामलों में तो हम अपनी मम्मी और चाचियों से तो फर्स्ट हो ही गये हैं।


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दिनांक - ७ नवम्बर २०११...ग्राम - कुरसेंड़ा, जिला - जालौन