इस बार जब हम अपने नाना के घर इलाहाबाद गये तो वहाँ खूब मस्ती की। मामा ने हमारे लिए एक हाथी भी खरीदा। अरे! परेशान न होइये, सच्ची का हाथी नहीं, हाथी की डिजायन की कुर्सी।उसमें हवा भर दो तो फूल कर बहुत बड़ी हो जाती है। उसमें बैठा भी जा सकता है। वहाँ तो जब तक हम रहे उसे मामा ने फुलाकर रख दिया। हम जब भी इधर-उधर से आते तो उसी पर जाकर बैठते।

बापस घर पर आने के बाद उसको बहुत दिनों तक निकाला नहीं गया। हम भी अपने दूसरे कई और खिलौनों में मगन हो गये।
अभी दो-तीन दिन पहले सामान एक सा करते समय मम्मी ने उसे बाहर निकाला तो हमारी नजर उस पर पड़ गई। बस फिर क्या था, हमें सब याद आ गया कि कैसे हमारा हाथी हमें अपने ऊपर बिठा लेता था।

हमने जल्दी-जल्दी उसमें हवा भरवाई और जा बैठे उसके ऊपर। बहुत दिनों के बाद बैठने को मिला था तो हमें भी बैठने में बड़ा मजा आ रहा था। इसी मजे में हम बहुत सी स्टाइल दिखाते हुए बैठे रहे।

देखा आपने हमारी स्टाइल को।


ये देख हमारी मम्मा को लगा कि हम शैतानी कर रहे हैं। अब उन्हें कौन समझाये कि हम कमरे का सामान सही कर रहे हैं। जब उन्हें नहीं समझा पाये और हमें लगा कि कहीं हम अब डाँट न खा जायें हमने चुपचाप दादी की गोद में बैठना सही समझा। 
खूब डराते रहो, हमें तो कुछ दिख ही नहीं रहा। 