स्नेह और आशीर्वाद के साथ

21 फ़रवरी 2010

उड़ी-उड़ी रे साइकिल मेरी उड़ी रे....

हमें अपने चाचा और पिताजी को गाड़ी चलाते देखकर गाड़ी चलाने की बहुत इच्छा करती है। एक दिन हमें अपनी इच्छा पूरी करने का मौका मिल गया।

हुआ यह कि हमारे पास के मकान में रहने वाले अनुज भैया अपने लिए बैटरी से चलने वाली साइकिल लेकर आये। उन्होंने साइकिल खरीदी और हम सभी को दिखाने के लिए घर पर ले आये।


बस फिर क्या था, हम पहले अनुज भैया के साथ घूमे और फिर हमने खुद भी गाड़ी चलाई।

देखा..........फिर थोड़ी देर में हमें समझ आया कि सभी लोग हमें मिलकर बुद्धू बना रहे हैं। हम तो बस गाड़ी में बैठे थे और गाड़ी स्टार्ट होने के बाद भी चल नहीं रही थी।


कुछ भी हो हमने अकेले गाड़ी में बैठने का मजा ले लिया और गाड़ी भले चली न हो पर हमने उसे चला तो लिया ही।


इसी के बाद हमारे चाचा हमारे लिए एक छोटी सी साइकिल ले आये हैं, अब हम उसको ही चलाते हैंआपको भी दिखायेंगे चला कर

=====================
चित्र चाचा के कैमरे से

1 टिप्पणी:

Udan Tashtari ने कहा…

अरे, इतने अच्छे बच्चे को किसने बुद्धु बनाया...आप तो अपनी छोटी साईकिल चला कर दिखाओ. :)