हमारे नाम की तरह हमारे होने में भी एक विशेष बात रही। घर में सभी लोग चाहते थे कि लड़की हो। हमारा जन्म हमारे शहर के जिला चिकित्सालय में हुआ था। हमारे पड़ोस की दादी चिकित्सा विभाग में ही कार्यरत हैं। उन्हीं की देखरेख में हमारा जन्म हुआ। घर से सभी सदस्य, पड़ोस की दादी और छोटी बुआ भी माँ के साथ गये थे।
(हम अपनी दादी के साथ)
(हम अपनी दादी के साथ)
हमारे जन्म होने के समय माँ के पास पड़ोस की दादी थीं और वे ही हमें लेकर बाहर आईं तो छोटी बुआ ने सबसे पहले हमें ले लिया। दादी उस समय दूर थीं उन्होंने इशारे से बुआ से पूछा कि कौन हुआ है? बुआ ने जो भी कहा हो पर दादी को लगा कि लड़का हुआ है। दादी ने बाहर निकल कर हमारे पिताजी को बताया कि लड़का हुआ है। दादी के बताने में और पिताजी के सुनने के बाद उत्साह सा नहीं दिखा। कारण घर के लोग चाहते थे कि लड़की हो।
(हम अपने चाचा के साथ)
जब छोटी बुआ ने आकर चाची को बताया और दादी को पता चला कि हम हुए हैं तो सभी बहुत प्रसन्न हुए। हमारे बड़े चाचा तो इतने ज्यादा खुश थे कि वे तो वहीं अस्पताल में ही पटाखे चलाना चाहते थे। उन्हें तो हमारे पिता ने, दादी ने और चाचा के दोस्त ने रोका तब वे माने। आसपास के लोग बड़ी हैरानी से हमारे घर के लोगों को देख रहे थे।
बड़े चाचा ने हमारे होने की सूचना सभी को फोन से देनी शुरू कर दी। उनकी बातों से छलकती अप्रत्याशित खुशी देखकर वहाँ आये लोगों को विश्वास नहीं हो रहा था कि आज के जमाने में भी कोई ऐसा होता है जो लड़की के जन्म पर बहुत प्रसन्न होता हो। शहर में भी जिसे-जिसे खबर की गई वो उसी समय वहीं अस्पताल में या अगले दिन घर पर हमसे मिलने के लिए आया। हम उसी दिन रात को लगभग साढ़े दस बजे घर बापस आ गये थे। हमें लेने के लिए हमारे छोटे चाचा के एक दोस्त -मनीष चाचा- अपनी गाड़ी लेकर अस्पताल आये थे।
हम घर आ गये, एक ऐसे घर में जहाँ लड़कियों को बहुत प्यार दिया जाता है, लड़को से भी ज्यादा। हमारे आते ही बहुत से कार्यक्रम होने लगे, इनके बारे में फिर कभी। अभी बस इतना ही।
जब छोटी बुआ ने आकर चाची को बताया और दादी को पता चला कि हम हुए हैं तो सभी बहुत प्रसन्न हुए। हमारे बड़े चाचा तो इतने ज्यादा खुश थे कि वे तो वहीं अस्पताल में ही पटाखे चलाना चाहते थे। उन्हें तो हमारे पिता ने, दादी ने और चाचा के दोस्त ने रोका तब वे माने। आसपास के लोग बड़ी हैरानी से हमारे घर के लोगों को देख रहे थे।
बड़े चाचा ने हमारे होने की सूचना सभी को फोन से देनी शुरू कर दी। उनकी बातों से छलकती अप्रत्याशित खुशी देखकर वहाँ आये लोगों को विश्वास नहीं हो रहा था कि आज के जमाने में भी कोई ऐसा होता है जो लड़की के जन्म पर बहुत प्रसन्न होता हो। शहर में भी जिसे-जिसे खबर की गई वो उसी समय वहीं अस्पताल में या अगले दिन घर पर हमसे मिलने के लिए आया। हम उसी दिन रात को लगभग साढ़े दस बजे घर बापस आ गये थे। हमें लेने के लिए हमारे छोटे चाचा के एक दोस्त -मनीष चाचा- अपनी गाड़ी लेकर अस्पताल आये थे।
हम घर आ गये, एक ऐसे घर में जहाँ लड़कियों को बहुत प्यार दिया जाता है, लड़को से भी ज्यादा। हमारे आते ही बहुत से कार्यक्रम होने लगे, इनके बारे में फिर कभी। अभी बस इतना ही।
1 टिप्पणी:
AKSHYANSHI KE JANM PAR PARIVAR KE SADASYON KI KHUSHI DEKH KAR BAHUT ACHGHHA LAGA .AISA HI HONA CHAHIYE.DADI,CHACHA KE SATH KI PHOTO SUNDAR LAGI.MAMMI PAPA KE SATH PHOTO BHI DALIYE. AKSHYASHI KI GHATNAYE PAD KAR MAJA AAYA.
एक टिप्पणी भेजें