कल हमारे साथ कुछ अलग सा हो गया। आपको पता है कि कल सोते समय हम पलंग से गिर गये। हुआ ये कि हम सोते-सोते कभी-कभी इधर-उधर करवट भी बदलते रहते हैं। कई बार तो हम बच जाते हैं क्योंकि कोई न कोई हमारे सोते समय हमारे आसपास घूमता रहता है।
कल हुआ ऐसा कि हमने करवट तो बदली और हम पलंग के दूसरी तरफ खिसक गये। अगले ही पल हमने पलंग के उस ओर अपने आपको सरका दिया जहाँ पर गिरने की सम्भावना थी। बस फिर क्या था, हम धड़ाम से नीचे।
एक पल को तो हमें समझ ही नहीं आया कि हमें हो क्या गया है? हम पलंग से कहाँ आ गये? अरे! हम जमीन पर कैसे? बस फिर क्या था, जैसे ही हमें लगा कि हम जमीन पर गिर पड़े हैं, हमने रोना शुरू कर दिया।
दादी ने, मम्मी ने दौड़ कर हमें उठाया। हालांकि हमें लगी नहीं थी क्योंकि हमारा सिर जमीन से टकरा नहीं पाया। पर हम डर बहुत गये थे। ये तो कहो कि हमारे बड़े चाचा घर पर नहीं थे नहीं तो सभी की बहुत डाँट पड़ती।
वैसे आपको बतायें कि हम एक बार पहले भी गिर चुके हैं। तब तो हम पहली बार गिरे थे और इतना डर गये थे कि पूछो नहीं। और मजेदार बात ये कि तब हम सो नहीं रहे थे। तब तो हम जागते में गिरे थे।
हुआ ये था कि तब हमें बहुत अच्छे से चलना नहीं आता था। हम वाकर के सहारे चला करते थे। कभी आँगन, कभी कमरों में, कभी बरामदे में चक्कर लगाते रहते थे। एक दिन हम अपना वाकर-टहल कर रहे थे तभी हमारे बड़े चाचा और चाची कहीं जाने के लिए घर से बाहर आये। हम भी उनके पीछे-पीछे दरवाजे तक आ गये।
दरवाजा खुला था और कोई भी हमारे साथ नहीं था। हमने सोचा कि लाओ चाचा-चाची को हम भी टाटा-बाय कर लें, बस हो गई यहीं चूक और हम हो गये धड़ाम। सीधे दरवाजे से बाहर गली में जा गिरे, वो भी वाकर समेत। तब भी हमें लगी नहीं थी पर पहली बार गिरे थे तो डर बहुत गये थे।
अब तो दो-तीन बार गिर चुके हैं पर गिरने से अभी भी डर लगता है। अब कोशिश करेंगे कि गिरें न।
कल हुआ ऐसा कि हमने करवट तो बदली और हम पलंग के दूसरी तरफ खिसक गये। अगले ही पल हमने पलंग के उस ओर अपने आपको सरका दिया जहाँ पर गिरने की सम्भावना थी। बस फिर क्या था, हम धड़ाम से नीचे।
एक पल को तो हमें समझ ही नहीं आया कि हमें हो क्या गया है? हम पलंग से कहाँ आ गये? अरे! हम जमीन पर कैसे? बस फिर क्या था, जैसे ही हमें लगा कि हम जमीन पर गिर पड़े हैं, हमने रोना शुरू कर दिया।
दादी ने, मम्मी ने दौड़ कर हमें उठाया। हालांकि हमें लगी नहीं थी क्योंकि हमारा सिर जमीन से टकरा नहीं पाया। पर हम डर बहुत गये थे। ये तो कहो कि हमारे बड़े चाचा घर पर नहीं थे नहीं तो सभी की बहुत डाँट पड़ती।
वैसे आपको बतायें कि हम एक बार पहले भी गिर चुके हैं। तब तो हम पहली बार गिरे थे और इतना डर गये थे कि पूछो नहीं। और मजेदार बात ये कि तब हम सो नहीं रहे थे। तब तो हम जागते में गिरे थे।
हुआ ये था कि तब हमें बहुत अच्छे से चलना नहीं आता था। हम वाकर के सहारे चला करते थे। कभी आँगन, कभी कमरों में, कभी बरामदे में चक्कर लगाते रहते थे। एक दिन हम अपना वाकर-टहल कर रहे थे तभी हमारे बड़े चाचा और चाची कहीं जाने के लिए घर से बाहर आये। हम भी उनके पीछे-पीछे दरवाजे तक आ गये।
दरवाजा खुला था और कोई भी हमारे साथ नहीं था। हमने सोचा कि लाओ चाचा-चाची को हम भी टाटा-बाय कर लें, बस हो गई यहीं चूक और हम हो गये धड़ाम। सीधे दरवाजे से बाहर गली में जा गिरे, वो भी वाकर समेत। तब भी हमें लगी नहीं थी पर पहली बार गिरे थे तो डर बहुत गये थे।
अब तो दो-तीन बार गिर चुके हैं पर गिरने से अभी भी डर लगता है। अब कोशिश करेंगे कि गिरें न।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें