अभी दो-तीन दिन पहले हम गये रेल्वे स्टेशन। हमें कहीं जाना नहीं था। उस दिन हमारी मीतू बुआ जी लखनऊ से ग्वालियर जा रहीं थी। हमारे पिताजी और चाचाजी उनसे मिलने के लिए स्टेशन जाने वाले थे। वे लोग तैयार हो रहे थे और हम जाग रहे थे। उन लोगों का तैयार होते देख हम समझ गये कि ये लोग कहीं जाने का प्लान बनाये हैं।
जब हमें पता लगा कि बुआ से मिलने जा रहे हैं तो हम भी साथ हो लिए। जैसे ही स्टेशन पहुँचे वहाँ एक रेलगाड़ी आ गई। हमने हालांकि इससे पहले भी ट्रेन देखी थी पर पास से, एकदम पास से पहली बार देखा। आपको बता दें कि जब हम हुए थे उसके दो-तीन महीने बाद ही हम अपने नाना के घर गये थे। नाना लेने तो आये थे गाड़ी लेकर और जब हम बापस आये तो ट्रेन से आये थे।
हम ट्रेन में घूमे भी कई बार हैं। एक बार ग्वालियर गये, फिर एक बार लखनऊ गये। कानपुर जाना भी एक बार हुआ तो ट्रेन से ही गये। एक बात बतायें कि इतने छोटे में ही हम खूब घूम लियें। दादी कहतीं हैं कि हमारे पिताजी को भी घूमने का बहुत शौक है, वे भी बहुत जगहों पर घूमे हैं। वे कहतीं हैं कि इसी तरह हमें भी घूमने का शौक है।
वैसे यह बात सच भी है हमें घूमने में मजा बहुत आता है। ट्रेन में तो हम बड़ी ही मस्ती से इधर-उधर घूमते-टहलते रहते हैं पर कार वगैरह से घूमने पर हमको नींद आ जाती है। एक तो इधर-उधर टहलने का मौका नहीं मिलता और फिर गोद में बैठे-बैठे हमें भी बोरियत हो जाती है।
हाँ, तो हम बता रहे थे आपको अपने स्टेशन की बात। वहाँ थोड़ी देर तक तो हमें अच्छा लगा फिर हमें इन्तजार करते-करते ऊबन होने लगी। थोड़ी देर में स्टेशन पर घंटी बजी और हमारे चाचा ने बताया कि अब ट्रेन आने वाली है। चाचा ने हमें सिगनल भी दिखाया और बताया कि कैसे इसके ऊपर-नीचे होने से ट्रेन रुकती और चलतीं हैं।
बहुत लम्बे इन्तजार के बाद हमारी बुआ की ट्रेन आ गई। बुआ के साथ हमारे बाबा भी थे, सबसे छोटे बाबा। हम तो बुआ जी की गोद में ही नहीं गये। हमें बहुत डर लग रहा था कि कहीं हमारी बुआ हमें अपने साथ न लिये जायें। हम इन्हीं बुआ के बारे में बता रहे थे। हम इन्हीं की शादी में लखनऊ गये थे और एक कार्यक्रम में ग्वालियर भी गये थे।
थोड़ी देर मिलने के बाद बुआ की ट्रेन चली गई और हम अपने चाचा-पिताजी के साथ घर लौट आये। हाँ, चाचा ने स्टेशन से यहाँ उरई के प्रसिद्ध रसगुल्ले भी खरीदे। आपको पता है कि एक फिल्म में शायद हम साथ-साथ हैं के एक डायलाग में उरई के रसगुल्लों का जिक्र किया गया है। बहुत ही बढ़िया रसगुल्ले हैं यहाँ के। कभी आप लोगों को खिलायेंगे।
स्नेह और आशीर्वाद के साथ
17 जुलाई 2009
स्टेशन की बात और रसगुल्ले
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
3 टिप्पणियां:
अच्छा है बेटा.. अब तुम्हारी बातें भी पढ़ने मिलेगी.. रोज आयेगें.. और तुम्हे भी आदि के दोस्तों में शामिल करतें है..
अब तो रसगुल्ले खाने उरई आना प़ड़ेगा.. :)आज तुमको रामप्यारी की क्लास में देखकर अच्छा लगा.
अरे उरई के रसगुल्ले प्रसिद्ध हैं हमें पता ही नहीं था नहीं तो हम अभी थोड़े दिन पहले ही आये थे जरुर आनंद लेते, चलो अगली बार सही..
एक टिप्पणी भेजें