स्नेह और आशीर्वाद के साथ

20 दिसंबर 2009

फैंसी ड्रेस आयोजन और हमारी सहभागिता

इस वर्ष परिवार में वैवाहिक कार्यक्रम कुछ ज्यादा ही थे। इस कारण हमारे लिए समय-समय पर सुंदर-सुंदर से कपड़े खरीद कर लाये जाते रहे। एक दिन हमारे चाचा ने हमारे लिए खास तौर पर फैंसी ड्रेस का आयोजन कर डाला।
हमने लगभग सारी ड्रेस पहन कर अपना जलवा दिखाया।









कहिये क्या ख्याल है आपका इस आयोजन पर? आयोजक चाचा का आभार कि उनहोंने आपको हम जैसी मॉडल से मिलवा दिया। बधाई दीजिये हमारे चाचा को..................
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इस बार आप लोगों से बहुत दिनों बाद मिलना हो सका, कारण वही शादी-विवाह.......आख़िर हम घर के बड़े है, कुछ जिम्मेवारी तो होती है।
शेष जल्दी ही........तब तक नमस्कार....

06 नवंबर 2009

देख लो कितना काम करते हैं हम

हम हो गए हैं अब बड़े,
इसलिए काम भी करते हैं बड़े-बड़े।
आप ही देख लो, हम अपना बिस्तर ख़ुद ही बिछाते हैं। वैसे घर में हम बहुत से काम अपने हाथ से ही करते हैं। खाना भी अपने हाथ से खाते हैं ये बात और है कि कई बार इस चक्कर में मम्मा से डांट पड़ जाती है।

04 नवंबर 2009

मौके का उठाया फायदा - झूला झूल कर

इस महीने की पहली तारीख को हमारी छोटी बहिन अपने नाना के घर चली गई तो अकेले में हमें बहुत ही खराब लग रहा है। घर में हम एकदम अकेले हो गये हैं। वैसे सारा दिन हम उसी के साथ खेला-कूदा करते थे।
वैसे वह अभी बहुत ही छोटी है, इस कारण हमारे साथ भागदौड़ तो कर नहीं पाती है पर लेटे-लेटे ही साथ में खेल लिया करती थी।
एक बात इस दौरान मजेदार भी हुई। हमें अपने छोटे में झूले में लेटने की बात तो याद है नहीं और न ही ये पता है कि झूले में लेटने का क्या मजा है। अब जबकि हमारी छोटी बहिन घर पर नहीं है तो हमने मौका देखकर झूले में लेटने का आनन्द उठा लिया।
वैसे हमारे लिए दूसरा झूला आँगन में टाँग दिया गया है। दिन में जब भी हमें मौका मिलता है उसी में झूल लेते हैं।


03 नवंबर 2009

हम निकले आज घूमने के लिए

आज बहुत दिनों बाद आप लोगों से बातचीत हो रही है। इधर हम मुम्बई से आने के बाद घर के कामों में ज्यादा व्यस्त हो गये थे।
आज हम अपने मम्मा और पिताजी के साथ घूमने गये। पहले हम गये पिताजी के बहुत ही अच्छे दोस्त डा0 दुर्गेश कुमार जी के घर। वहाँ मिली दीदी और देवांश भैया से मुलाकात हुई।

बाएँ से हम, देवांश भइया, मिली दीदी

उनके साथ हम खूब खेले, बड़ा मजा आया।
बाद में दीदी और भैया हमारे लिए अपने सारे खिलौने निकाल लाये। मजा तो तब आया जब उन्होंने हमें खिलौनों के बीच बैठाकर हमें भी खिलौनों में शामिल कर दिया।
वहाँ से आने के बाद हम अपनी बुआ के घर भी गये। हमारी दीदी तो बाहर गईं थीं सो हमारे साथ खेलने वाला कोई नहीं था। बुआ के घर थोड़ी ही देर रुके और बापस दादी के पास आ गये।
घूमने में पर आया तो मजा।


09 अक्तूबर 2009

मॉल में पुतले ही पुतले

हमने आपको पिछली पोस्ट मुम्बई से ही की थी, उसके बाद घूमने में इतने व्यस्त रहे कि आपसे बातें करने का मौका ही नहीं मिला। आपको अगली कुछ पोस्टों में हम मुम्बई की अपनी यात्रा के बारे में ही बतायेंगे।
हम लोग पहले दिन तो अपनी थकान ही उतारते रहे। घर में ही बुआ-फूफा से बातें होतीं रहीं। अगले दिन हम पास के बाजार में गये। वहाँ लिटिल वल्र्ड के नाम का एक माल था। अपनी बुआ के साथ हम माल में भी गये। हमें वहाँ बहुत अच्छा लग रहा था।
ऊपर-नीचे होती साढ़ियाँ तो हमने पहली बार देखीं थीं। इतनी सुंदर, सजी हुई बड़ी-बड़ी दुकानें भी हम पहली बार देख रहे थे। एक दुकान पर बच्चे भी थे। हमने सोचा कि चलो इन्हीं से दोस्ती की जाये तो पता लगा कि ये तो कपड़े पहने पुतले लगे हैं।


उसके बाद हमको भूख भी लगने लगी थी। कारण सामने एक रेस्टोरेंट दिख रहा था। सब लोग तो खाने-पीने में मस्त हो गये, हमें तो ज्यादा कुछ खाना-पीना नहीं था सो हम बाहर आ गये। बाहर देखा तो एक सुंदर से अंकल बड़ी सी सीट पर अकेले बैठे हैं। हम भी उनके पास जाकर खड़े हो गये।


लो जी, यहाँ भी गड़बड़ कर दी। ये भी अंकल पुतले। हमने सोचा कि क्या बात है कि यहाँ सब तरफ पुतले ही पुतले क्यों हैं?
जब हम थकने लगे तो हमें हमारे पिताजी के दोस्त सुभाष चाचा ने गोद में लेकर माल में घुमाया।

मुम्बई में हमने अपनी यात्रा के समय बहुत अच्छे-अच्छे माल देखे। बहुत मजा आया।
अगले दिन हम कार से अपने चाचा के पास पुणे गये थे। वहाँ का रास्ता बहुत ही सुंदर, हरा-भरा था। उस कार यात्रा में भी बड़ा मजा आया। उसके बारे में बाद में.....शायद कल।







01 अक्तूबर 2009

हम हैं मुंबई की सैर पर

इन दिनों हम अपनी बुआ के पास मुंबई में हैं. तीन दिन पहले हम यहाँ आये थे. मुंबई के बारे में हम अभी ज्यादा कुछ जानते तो हैं नहीं, न ही कुछ ज्यादा सुन रखा था. बस ये मालूम था कि मुंबई देश की मायानगरी है.
मुंबई आये ट्रेन से और स्टेशन पर लेने आये हमारे बुआ और फूफा. जैसे ही चले मुंबई की असली तस्वीर दिखी. भयंकर जाम लगा था. हम लोगों को बस 100 मीटर की दूरी से मुड़ना था पर उसी एक ज़रा से मोड़ के लिए लगभग आधा घंटा जाम में फंसे रहे. बाद में जैसे तैसे निकले और घर आ गए. अगले दिन हम थकान के मारे सोते रहे. पूरा एक दिन तो हम लोगों का ट्रेन में बीता फिर एक दिन घर में. हम तो बुरी तरह बोर हो गए थे. खीज के मारे रोना भी शुरू कर दिया था.
आज अपनी बुआ के साथ घूमने गए. पास में बने एक मॉल में गए. घर से बाहर निकलने के कारण हमें बहुत अच्छा लग रहा था. मॉल में हम खूब घूमे, खूब मजा किया. बहुत अच्छा लगा. अब हम बहुत खुश हैं.
अभी हम दो-तीन दिन यहाँ रुकेंगे, कल हमारे फूफा जी की छुट्टी है तो कल उनके साथ मुंबई पूरे दिन घूमेंगे. यदि मौका मिला तो यहाँ की और बातें बताएँगे.

19 सितंबर 2009

मामा लाये हमारे लिए हाथी

इस बार जब हम अपने नाना के घर इलाहाबाद गये तो वहाँ खूब मस्ती की। मामा ने हमारे लिए एक हाथी भी खरीदा। अरे! परेशान न होइये, सच्ची का हाथी नहीं, हाथी की डिजायन की कुर्सी।
उसमें हवा भर दो तो फूल कर बहुत बड़ी हो जाती है। उसमें बैठा भी जा सकता है। वहाँ तो जब तक हम रहे उसे मामा ने फुलाकर रख दिया। हम जब भी इधर-उधर से आते तो उसी पर जाकर बैठते।
बापस घर पर आने के बाद उसको बहुत दिनों तक निकाला नहीं गया। हम भी अपने दूसरे कई और खिलौनों में मगन हो गये।
अभी दो-तीन दिन पहले सामान एक सा करते समय मम्मी ने उसे बाहर निकाला तो हमारी नजर उस पर पड़ गई। बस फिर क्या था, हमें सब याद आ गया कि कैसे हमारा हाथी हमें अपने ऊपर बिठा लेता था।
हमने जल्दी-जल्दी उसमें हवा भरवाई और जा बैठे उसके ऊपर। बहुत दिनों के बाद बैठने को मिला था तो हमें भी बैठने में बड़ा मजा आ रहा था। इसी मजे में हम बहुत सी स्टाइल दिखाते हुए बैठे रहे।
देखा आपने हमारी स्टाइल को।

12 सितंबर 2009

दादी की गोद सबसे सुरक्षित जगह है

ज से जहाज तो उड़ गया, अब? ये बात कोई और तो समझेगा नहीं कि हमें करना क्या है? कहना क्या है? अभी तो स्थिति ये है कि हम ही बोलते हैं और हम ही समझते हैं। कभी-कभी कुछ शब्द ऐसे निकल जाते हैं जो औरों की समझ में आ जाते हैं तो हमें बहुत अच्छा लगता है कि चलो कोई तो है जो हमारी बात को समझ रहा है।
समझ और अधिक विकसित करने के लिए आवश्यकता होती है ज्ञान की। हम पढ़ भी रहे हैं। सिर्फ कोर्स की किताबें पढ़ते रहने से कुछ नहीं होगा। तो हमने समाचार-पत्र भी पढ़ना शुरू कर दिया।
पढ़ने का तो हाल ये है कि अभी कुछ दिनों पहले हमारे पिताजी अपने लिए नई कुर्सी लेकर आये थे। हमने भी मौका निकाला और जा बैठे।
मन भर गया तो उतर कर सामान इधर-उधर करना शुरू कर दिया। ये देख हमारी मम्मा को लगा कि हम शैतानी कर रहे हैं। अब उन्हें कौन समझाये कि हम कमरे का सामान सही कर रहे हैं। जब उन्हें नहीं समझा पाये और हमें लगा कि कहीं हम अब डाँट न खा जायें हमने चुपचाप दादी की गोद में बैठना सही समझा।
अब हम तो हम हैं, शान्त तो रहना ही नहीं था। बस मम्मा को जीभ दिखा कर चिढ़ाना शुरू कर दिया। हमें मालूम था कि दादी की गोद में हमारा कोई कुछ नहीं कर सकता है।
मम्मा को भी ये पता है तो वो भी हमें दूर से ही डराने लगीं। हमने भी कुछ नहीं देखा और अपनी आँखें बन्द कर लीं। खूब डराते रहो, हमें तो कुछ दिख ही नहीं रहा।

11 सितंबर 2009

ज से जहाज और अ से आम

इधर कुछ दिनों से हम लगातार कुछ न कुछ बोलने के मूड में रहते हैं। कोई मिलने आयेगा तो उससे बातें, किसी का फोन आ गया तो उससे भी बातें। मन बहुत करता है बातें करने का।
इस बोलने बतियाने के कारण कई सारे शब्द सीख भी लिए हैं। वैसे हमने बोलना तो बहुत पहले ही शुरू कर दिया था। जब हम पहली बार अपने नाना के घर गये थे, तब हम तीन माह के रहे होंगे। हमने उसी समय पापा कहना शुरू कर दिया था। हालांकि ऐसा बराबर नहीं कहते थे।
अभी चाचा हमारे साथ लगातार कई दिनों तक रहे। हम जब अपनी किताब खोल कर बैठते तो उसमें हमें भालू, चीता, जहाज, कुत्ता, भैया, दीदी बहुत ही पसंद आते। बस चाचा ने हमारी पसंद देखी और एक शब्द हमें सिखा दिया ज से जहाज।
हम बड़ी आसानी से इस शब्द को सीख भी गये। अब जब भी कोई पूछता है कि ज से, हम तुरन्त अपना हाथ आसमान की ओर ले जाकर कहते हैं जहाज। मम्मा और चाची ने सिखाया अ से आम।
आपको बतायें हम और भी कई शब्द बोल लेते हैं पर कई बार जानबूझ कर नहीं बोलते नहीं तो हमारे घर के लोग बस सारा दिन वही नया शब्द हमसे सुनते रहते हैं।

30 अगस्त 2009

उफ़, एक बच्चे से इतना सारा काम

आजकल तो बड़ी समस्या हो गई है। हम अभी डेढ़ साल के भी नहीं हो पाये हैं और दीदी बन गये तो सबको लगता है कि जैसे बहुत बड़े हो गये हैं। अबतो घर के काम भी हमें करने होते हैं। छोटी बहिन को भी खिलाना होता है। उसे खिलाना ही अपने आप में बहुत बड़ा काम था कि हमारे ऊपर घर का काम भी डाल दिया।
अब आप ही देखिए, कैसे हमें कभी आँगन में तो कभी कमरे में वाइपर करना पड़ रहा है। हमें तो कुछ समझ नहीं आ रहा है कि क्या किया जाये? इस चक्कर में न तो टीवी देख पा रहे हैं और न ही कहीं घूमने जा पा रहे हैं। और तो और कभी कभी हम चुपचाप पढ़ भी लिया करते थे, अब पढ़ भी नहीं पा रहे हैं।
हमने चुपके से चाचा को दो तीन बार फोन भी कर दिया है। अभी चाचा बाहर हैं, जब चाचा बापस आयेंगे और सबको डाँट पड़ेगी तब मजा आयेगा। तब हम कहेंगे और करवाओ बच्चे से काम।
अभी चलते हैं हमारा छोटा बेबी, अरे आप लोग भूल जाते हैं, हमारी छोटी बहिन, इस समय रोने लगा है। चलें उसे थोड़ा सा प्यार कर लें और चुप भी करा दें। घर में तो कोई उस छोटे से बच्चे को खिला ही नहीं पाता है।

28 अगस्त 2009

सीपीयू की सवारी ही कर डाली

अभी दो तीन दिन पहले हमारा कम्प्यूटर काम नहीं कर रहा था। नहीं ऐसा नहीं है कि बिलकुल काम न कर रहा हो, काम तो कर रहा था पर बहुत ही धीरे धीरे। चाचा ने बताया कि कोई वायरस आ गया है। वैसे हमारे चाचा तो घर पर ही कम्प्यूटर फार्मेट कर लेते हैं पर लगता था कि अबकी कोई बड़ी समस्या थी, इस कारण वे उसे दिखाने दुकान पर ले गये थे।
अब कम्प्यूटर में खराब क्या होना था, सीपीयू। तो चाचा ने उसे कम्प्यूटर से अलग किया और बाहर निकाल कर रख दिया। हम उस समय टहल टहल कर बड़े मजे से बिस्किट खा रहे थे। हमने देखा कि ये अजीब सा डिब्बा यहाँ क्यों रख दिया गया है, कुछ समझ नहीं आया।
बस फिर क्या था, चाचा उस समय अपनी बाइक निकाल रहे थे और हम लगे सीपीयू की सवारी करने। बड़े आराम से सीपीयू पर बैठे और अपने बिस्किट का स्वाद लेने लगे। मम्मी ने देखा तो उन्हें लगा कि कहीं इस कम्प्यूटर के सामान में हम कुछ और गड़बड़ न कर दें। वे लगीं हमें डाँटने, अब हमें पता था कि दादी और चाचा के रहते कोई भी हमें डाँट नहीं सकता है। इस कारण से हम और भी शेर बने रहे।
मम्मी ने एक दो बार तेजी से बोला तो हमने भी उन्हें डरा दिया। अब ये तो नहीं पता कि वे डरीं या नहीं पर थोड़ा सा मुस्करा कर अपने काम में लग गईं। काम में लगने का एक और कारण था कि दादी भी उन्हें देख रहीं थीं और चाचा भी अन्दर आ गये थे। चाचा के आने से हमें बड़ा आराम हुआ। हम मजे से अपना बिस्क्टि खाने लगे। चाचा ने भी कुछ नहीं कहा।
जब हमारा बिस्किट खत्म हो गया तो चाचा ने कहा कि हमें इसे सुधरवाने ले जाना है। अब तुम उतरो और अपने खिलौनों से खेलो। हम चाचा की बात मानकर आराम से उतर गये और अपने एक खिलौने को उठाकर उससे खेलने लगे।
हमें मालूम था कि अब खाली सीपीयू पर बैठने का मजा भी नहीं है क्योंकि बिस्किट तो खत्म हो चुका था। इसके अलावा ये भी मालूम था कि जितनी देर हम सीपीयू को ले जाने में करवायेंगे उतनी देरी से वह सुधर कर आयेगा और उतनी ही देरी से हम आप लोगों से बातें कर पायेंगे।
आप लोगों से जल्दी से जल्दी मिलने के लालच में हम सीपीयू से उतरे और चाचा उसे सही करवाने ले गये।


27 अगस्त 2009

क्या आप इस तरह पाउडर लगाते हैं?

आजकल हम अपने साज श्रंगार पर भी ध्यान दे रहे हैं। मम्मी तैयार करतीं हैं तो हमको लगता है कि हम अपने आप तैयार हो जाया करें। आखिर हम बड़े हो गये हैं।
मम्मी ने ड्रेसिंग टेबिल का सारा सामान तो अंदर कर दिया है। बाहर कुछ भी नहीं रखा है इस कारण हमें अपने आप तैयार होने में बड़ी दिक्कत आ रही है। मौका देखकर हम अपने आप तैयार होना शुरू कर देते हैं।
एक दिन मौका लग गया। पिताजी ने किसी काम से छोटा शीशा मँगवाया। काम हो जाने के बाद वे उसे फिर बापस रखवाना भूल गये। बस फिर क्या था, हमारे तो मजे हो गये। हमने तुरन्त उसे उठाकर अपने आपको देखा और फिर वही पास में रखा पाउडर का डिब्बा उठा कर अपना काम शुरू कर दिया।
देखा आपने हम कितनी अच्छी तरह से पाउडर लगाते हैं। घर में इस तरह कोई भी पाउडर नहीं लगाता है। चेहरे पर, देह पर तो सभी लगाते हैं पर हमने पाउडर सिर पर लगा रखा है। आप ही बताइये क्या कोई सिर पर पाउडर लगाता है? नहीं न, हम ही ऐसा कर सकते हैं।
ऐसा कर दिया, बड़ा मजा आया। बुरा तब लगा जब मम्मी ने हमारे हाथ से पाउडर का डिब्बा छुड़ा कर हमसे दूर रख दिया। हमारे हाथ से शीशा भी ले लिया, फिर हम खुद को बहुत देर तक नहीं देख सके।
चाचा ने फोटो खींच ली थी अब उसी को देख लेते हैं। कहिए सुंदर लग रहे हैं हम पाउडर सिर पर लगा कर?


24 अगस्त 2009

पढ़ना देख लिया अब लिखना भी देख लो

नमस्कार,
आपसे बहुत दिनों बाद मिलना हो रहा है। इसका कारण ये रहा कि हम आजकल अपनी पढ़ाई पर ध्यान ज्यादा दे रहे हैं। जमाना पढ़ने का ही है। आपको पहले भी बताया था कि हम पढ़ाई करने लगे हैं। अब हमने लिखना भी शुरू कर दिया है।
एक दिन हमने सोचा कि हमारे पिताजी ने तो बहुत कुछ लिख डाला है तो हम भी लिखें। बस हमने भी मौका निकाल कर एक पेन उठा लिया और इधर उधर चलाना शुरू कर दिया। हमारे पिताजी ने इसे देखा तो हमारे लिए एक नई डायरी निकाल दी।
उन्होंने डायरी में हमारा नाम, जन्मतिथि, फोन नम्बर, ब्लाग का यूआरएल भी लिख दिया। हमें तो जल्दी पड़ी थी लिखने की तो हमने जल्दी से डायरी छीन ली।
अब आप देखिए हमने कैसे लिखना शुरू कर दिया। एक पेज फिर दूसरा और फिर तीसरा। इतना लिखने के बाद हमारा डायरी में लिखने से मन भर गया तो हमने अपने हाथ पर लिखना शुरू कर दिया।
बस यहीं हो गई गड़बड़, पिताजी ने हमारे हाथ से पेन छुड़ा लिया और डायरी भी बन्द करके रख दी। हमें साथ में यह भी समझाया कि पेन से कागज पर ही लिखा जाता है, शरीर पर नहीं।
हम भी समझ गये, तभी तो हमें अब डायरी और पेन मिल जाता है लिखने को। अब हम डायरी में ही लिखते हैं, कभी कभी नजर बचा कर अपने हाथ पर लिख ही लेते हैं।


11 अगस्त 2009

हमारी गोद में वो रोती नहीं है

रविवार को चाची हमारी छोटी सी बहिन को लेकर घर आ गईं। तबसे हमें बहुत इच्छा हो रही थी कि उसे एक बार हम अपनी गोद में लेकर खिलायें। पर क्या करें कोई हमें गोद में उसको देता ही नहीं।


हमारी छोटी बहिन भी बस सारा दिन सोती ही रहती है। दादी कहती हैं कि हम इतना नहीं सोते थे। कल हम रोज की तरह चाची के पास खड़े थे, हमारी बहिन सो रही थी। हमने उसको लेने के लिए फिर मम्मी से कहा, मम्मी तो नहीं मानी पर दादी ने हमें पलंग पर बिठाया और हमारी गोद में हमारी छोटी बहिन को लिटा दिया।


देखो, हम कितनी तो अच्छी तरह से उसको अपनी गोद में ले लेते हैं। ये बात और है कि दादी ने डर के कारण एक हाथ उसके सर के पीछे लग रखा था।
हमारी गोद में वह रोती भी नहीं है।

09 अगस्त 2009

हम खेल रहे हैं अपनी बहिन के संग

आज बहुत दिनों बाद आपसे मिलना हो पा रहा है। एक तो घर में सभी व्यस्त थे तो किसी को हमारी बात सुनने का समय नहीं था और दूसरी बात ये थी कि हमारी तबियत खराब हो गई थी।
हमारी छोटी बहिन आई। वो और चाची अस्पताल में थे, इस कारण से दादी और चाचा को वहीं रुकना होता था। हमें दादी और चाचा के बिना बहुत खराब लग रहा था। पहले तो हम सोच रहे थे कि एक-दो दिन में सभी लोग घर बापस आ जायेंगे पर तीन दिन बाद भी जब ये लोग घर नहीं आये तो हमने दादी के लिए रोना शुरु कर दिया।
दादी और चाचा को याद करते हुए हम रोते और इसी कारण से हमारी तबियत बिगड़ गई। कल शाम से हालत सही हुई है और मजेदार बात ये हुई है कि आज ही सुबह चाची हमारी छोटी सी बहिन को लेकर घर आ गईं। हम बहुत ही खुश हुए उसको देखकर।
अब हमारी तबियत भी ठीक है तो हमने कहा कि आपसे दो-चार बातें कर ली जायें। इसके बाद हम फिर व्यस्त हो जायेंगे अपनी बहिन के साथ खेलने में।
बाकी कल हम आपको अपनी बहिन की सुंदर सुंदर सी फोटो दिखायेंगे। बिलकुल हमारी तरह है वह। आप देखना तब आपको भी ऐसा ही लगेगा।

02 अगस्त 2009

एडवांस में भेज दी थी बहिन की राखी

आने वाली पाँच तारीख को रक्षाबन्धन है। इसी तारीख को हमारी बुआ की बेटी ‘गौरी’ का जन्मदिन भी है। राखी का त्योहार हम पिछले साल भी मना चुके हैं, तब हम बहुत छोटे थे। इस बार हम बड़े हो गये हैं।

इस बार हमने अपनी राखी अपने सनय दादा को भेज दी है। वे लखनऊ में रहते हैं और अभी उनके यहाँ आने की कोई उम्मीद भी नहीं है। एक बड़ी मजेदार बात हुई, चाचा अभी कुछ दिन पहले लखनऊ में ही थे और तब तक हमने अपनी राखी भेजी नहीं थी। चाचा को ये बात मालूम थी तो उन्होंने एक राखी हमारी ओर से लेकर सनय दादा को दे दी थी। बाद में हमने भी एक राखी भिजवा दी।

(ये हैं हमारे सनय दादा)


दो-तीन दिन बाद जब हमने बुआ से फोन से बात करके राखी मिलने के बारे में पूछा तो बुआ ने बताया कि चाचा राखी लेकर दे गये हैं। अब सनय दादा के पास दो राखी हो गईं थीं तो दादी ने कहा कोई बात नहीं, हो सकता है कि एक बहिन की राखी एडवांस में पहुँच गई हो।
दादी की बात सच भी निकली, हमारी छोटी सी प्यारी सी बहिन भी आ गई। अब यदि सनय दादा यहाँ आते हैं तो हम दोनों मिलकर उन्हें राखी बाँधेंगे।
अभी तो हम बस इन्तजार कर रहे हैं रक्षाबन्धन का।


01 अगस्त 2009

मेरे घर आई एक नन्ही परी

कल हमारी बहुत व्यस्तता रही। घर में खुशी का माहौल था और हमारी खुशी तो पूछो ही नहीं। कारण, हमारी छोटी सी बहिन कल आई थी।

जी हाँ, आप सही समझे। कल रात को हमारे चाचा-चाची को पहली पुत्री हुई। हम तो बहुत खुश हुए। हमने अपनी छोटी बहिन को बहुत प्यार भी किया। कोई हमको छूने भी नहीं दे रहा था फिर हमने जिद करके उसको थोड़ी देर में छू कर देख भी लिया।

बहुत प्यारी है बिलकुल हमारी तरह है। सब लोग कह रहे थे कि हम भी जब हुए थे तो इसी तरह के दिखते थे। अब किसी को कौन समझाये कि हमारी बहिन हमारे जैसी नहीं होगी तो किसके जैसी होगी।

आपको बतायें अब इस रक्षाबन्धन पर अपने सनय दादा को हम अकेले ही राखी नहीं बाधेंगे, हमारे साथ हमारी छोटी सी बहिन भी राखी बाँधेगी।
अभी बहुत भागदौड़ है, आखिर चाची अभी अस्पताल में ही हैं। घर का और वहाँ का काम करना है। बहुत जिम्मेवारी होती है बड़ों के सिर पर। हाँ...हाँ...हम भी तो अब बड़े हो गये हैं।
चलिए अब आप लोगों से फिर मिलेंगे, अभी अपनी बहिन को देख आयें, पता चला कि बहुत रो रही है हमारे लिए।