हमने आपको पिछली पोस्ट मुम्बई से ही की थी, उसके बाद घूमने में इतने व्यस्त रहे कि आपसे बातें करने का मौका ही नहीं मिला। आपको अगली कुछ पोस्टों में हम मुम्बई की अपनी यात्रा के बारे में ही बतायेंगे।
हम लोग पहले दिन तो अपनी थकान ही उतारते रहे। घर में ही बुआ-फूफा से बातें होतीं रहीं। अगले दिन हम पास के बाजार में गये। वहाँ लिटिल वल्र्ड के नाम का एक माल था। अपनी बुआ के साथ हम माल में भी गये। हमें वहाँ बहुत अच्छा लग रहा था।
ऊपर-नीचे होती साढ़ियाँ तो हमने पहली बार देखीं थीं। इतनी सुंदर, सजी हुई बड़ी-बड़ी दुकानें भी हम पहली बार देख रहे थे। एक दुकान पर बच्चे भी थे। हमने सोचा कि चलो इन्हीं से दोस्ती की जाये तो पता लगा कि ये तो कपड़े पहने पुतले लगे हैं।
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उसके बाद हमको भूख भी लगने लगी थी। कारण सामने एक रेस्टोरेंट दिख रहा था। सब लोग तो खाने-पीने में मस्त हो गये, हमें तो ज्यादा कुछ खाना-पीना नहीं था सो हम बाहर आ गये। बाहर देखा तो एक सुंदर से अंकल बड़ी सी सीट पर अकेले बैठे हैं। हम भी उनके पास जाकर खड़े हो गये।
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लो जी, यहाँ भी गड़बड़ कर दी। ये भी अंकल पुतले। हमने सोचा कि क्या बात है कि यहाँ सब तरफ पुतले ही पुतले क्यों हैं?
जब हम थकने लगे तो हमें हमारे पिताजी के दोस्त सुभाष चाचा ने गोद में लेकर माल में घुमाया।
मुम्बई में हमने अपनी यात्रा के समय बहुत अच्छे-अच्छे माल देखे। बहुत मजा आया।
अगले दिन हम कार से अपने चाचा के पास पुणे गये थे। वहाँ का रास्ता बहुत ही सुंदर, हरा-भरा था। उस कार यात्रा में भी बड़ा मजा आया। उसके बारे में बाद में.....शायद कल।